कानपुर के बालिका गृह में बच्चियों से बलात्कार, सात गर्भवती, 57 कोरोना संक्रमित

 22 Jun 2020  629

संवाददाता/in24 न्यूज़.
इस देश में महिला सुरक्षा की व्यवस्था पर पूरा ध्यान देने के बावजूद कई घटनाएं ऐसी होती हैं जिससे पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगते हैं. अब एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने बिहार के मुजफ्फरपुर की याद दिला दी है. कानपुर में बालिका गृह में बच्चियों से बलात्कार की सनसनीखेज वारदात सामने आई है। जानकारी मिली है कि बालिका गृह की सात बच्चियां गर्भवती हैं। इसके अलावा 57 कोरोना पॉजिटिव और इनमें कइयों में एचआईवी संक्रमण भी पाया गया है। मामला कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने पुरजोर तरीके से उठाया तो उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक हलके में हड़कंप मच गया। कानपुर के जिलाधिकारी ने कहा कि जिन बच्चियों के गर्भवती होने की बात कही जा रही है वे इसी अवस्था में लाई गई थीं। डीएम साहब बार बार दो लड़कियों के गर्भवती होने का जिक्र करते रहे, जबकि मामला 7 का है। इसके अलावा सरकारी टीम ने विजिट कर बालिका गृह में किसी तरह की बलात्कार की गुंजाइश से ही इनकार कर दिया है। आधिकारिक बयान जारी कर कहा गया है कि बालिका गृह में मर्दों के प्रवेश पर पाबंदी है और बच्चियों तक पहुंचना मुश्किल है। जिस तरह के आरोप लगे हैं उसमें महज डीएम का बयान और राज्य सरकार की जांच टीम नाकाफी है। गंभीर आरोपों को देखते हुए बच्चियों के बयान दर्ज नहीं हुए। शुरुआत में खबर आई थी कि दो बच्चियां ऐसी हैं जिनके गर्भ में 8 महीने का बच्चा है। साथ ही दावा किया गया कि इनके साथ बीते तीन सालों से बलात्कार होता रहा है। इन्हें डरा धमकाकर खुद को समर्पित करने के लिए दबाव बनाया जाता था। बावेला मचा तो जल्दी ही पता चला कि 2 की बजाय ऐसी सात बच्चियां हैं जो गर्भवती हैं और साठ के करीब बच्चियां कोरोना पॉजिटिव भी। बालिका गृह के बारे में जो बातें कही जा रही हैं वो योगी सरकार की लचर प्रशासनिक व्यवस्था की ओर इशारा करता है। आखिर बालिका गृह में कोरोना संक्रमण कैसे विस्तार लेता रहा। कई बच्चियां किन परिस्थितियों में एचआईवी से पीड़ित हुईं। बलात्कार का आरोप लगा है तो पीड़िताओं का बयान क्यों नहीं तत्काल दर्ज कराया जा रहा है? मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायिक जांच के आदेश में देरी क्यों की जा रही है? जाहिर है प्रशासनिक अधिकारियों की पूछताछ में बच्चियां कुछ नहीं बोलेंगी। वजह ये है कि आरोप में ही कहा गया कि इन्हें डराया धमकाया जा रहा है। डर के आगे ये कैसे माना जा सकता है कि बच्चियां अपनी मुश्किलें खुलकर बोल पाएंगी। जिस तरह पीड़िताएं सहमी हुई हैं, उससे तो लगता है कि पहली प्राथमिकता इनका डर भगाना है। इन्हें भरोसा दिलाना होगा कि न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था इनके साथ है। इसके बाद ही ये खुलकर अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में बता सकेंगी। बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका गृह मामले की याद ताजा हो गई। वहां भी मामला कई महीनों पहले उठा। दबाने की लंबी कोशिश हुई। मुंबई के प्रतिष्ठित संस्थान टीआईएसएस की रिपोर्ट को महीनों दबाया गया। जब बात खुली तो सरकार के पैरों के नीचे से जमीन ही जैसे खिसक गई हो। कोर्ट के आदेश पर आनन फानन में कार्रवाई  हुई और मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इस दौरान आरोपी ब्रजेश ठाकुर बार बार धमकी देता रहा कि अगर उसने मुंह खोल दिया तो बड़े बड़े लोगों को मुसीबत होगी। मुजफ्फरपुर कांड में खुलासा हुआ कि आरोपी ब्रजेश ठाकुर तो बलात्कार करता ही था। वो बालिका गृह की लड़कियों को नेताओं और अफसरों के सामने भी परोसता था। कुछ इसी तरह का एंगल कानपुर में भी तो काम नहीं कर रहा है। कुछ समाजसेवी योगी सरकार को इस मामले में गंभीर एक्शन लेने की सलाह दे रहे हैं।  महज डीएम साहब की जांच से काम नहीं चलेगा। बल्कि इसकी पुख्ता जांच कराकर सुनिश्चित करनी होगी कि बेटियां बालिका गृह में किस हद तक सुरक्षित हैं।