निर्भया गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने रखी फांसी की सजा बरकरार

 05 May 2017  3286

ब्यूरो रिपोर्ट /in24 न्यूज़, नई दिल्ली

नई दिल्ली: दिल्ली में ही नहीं बल्कि दुनिया का दिल दहला देने वाली 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली में निर्भया गैंगरेप मामले में चार दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए फांसी की सजा को बरकरार रखा है. आपको बता दें कि निर्भया के माता पिता कोर्ट की सुनवाई के वक़्त मौजूद थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा सेक्स और हिंसा की भूख के चलते इस बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया है. दोषी अपराध के प्रति आसक्त थे. जिस तरह इस अपराध को अंजाम दिया गया है शायद ही किसी ने सोचा होगा. ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि कोर्ट का फैसला सुनने के बाद कोर्ट में तालियां बजने लगीं.

गैंगरेप के चार दोषियों मुकेश, अक्षय, पवन, और विनय को साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 मार्च 2014 में मुहर लगा दी थी. वैसे दोषियों ने अपील की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी. इसके बाद तीन जजों की बेंच को मामले को भेजा गया और कोर्ट ने केस में मदद के लिए दो एमिक्‍स क्यूरी नियुक्त किए थे.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह की. आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई हर सोमवार, शुक्रवार और शनिवार को भी की गई. तक़रीबन एक साल तक चली इस केस की सुनवाई और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रखा था. दुनियाभर को दहला देने वाली इस वारदात के बाद मुख्य आरोपी ड्राइवर राम सिंह ने तिहाड़ जेल में ख़ुदकुशी कर ली थी, जबकि नाबालिग अपनी तीन साल की सजा सुधारगृह में पूरी कर चुका है.

एक नज़र इस पूरे मामले के सफ़र पर डाला जाए तो यह क्रूर घटना 16 दिसंबर 2012 को घटित हुई जिसमें 20 किलोमीटर तक चलती बस में निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार और क्रूरता को अंजाम दिया गया। 17 दिसंबर 2012 को चार आरोपियों, राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा, पवन गुप्ता की शिनाख़्त की गई। 18 दिसंबर 2012 को  चारों आरोपी गिरफ़्तार किए गए। 21 दिसंबर 2012 को पांचवां नाबालिग आरोपी आनंद विहार बस अड्डे से पकड़ा गया. 22 दिसंबर 2012 को छठा आरोपी अक्षय ठाकुर औरंगाबाद से गिरफ़्तार हुआ। 26 दिसंबर 2012 को निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया. 29 दिसंबर 2012 को निर्भया का सिंगापुर में निधन हुआ. 3 जनवरी 2013 को  फास्ट ट्रैक कोर्ट में पांच आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई। 28 फरवरी 2013 को  जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में नाबालिग पर आरोप तय हुआ. 11 मार्च 2013 को मुख्य आरोपी राम सिंह ने आत्महत्या कर ली. 31 अगस्त 2013 को नाबालिग़ आरोपी दोषी क़रार दिया गया. 10 सितंबर 2013 को चारों आरोपी दोषी क़रार दिए गए. 13 सितंबर 2013 को चारों आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई. 7 अक्टूबर 2013 को चारों आरोपियों ने दिल्ली हाइकोर्ट में की अपील की.  13 मार्च 2014 को  हाइकोर्ट ने मौत की सज़ा बरक़रार रखी.15 मार्च 2014 को चारों आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 20 दिसंबर 2015 को नाबालिग आरोपी तीन साल बाद बाहर आया। 27 मार्च 2017 को  सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रखा. अब अगर इस सफर के असर की बात की जाए तो पूरे देश में महिला अपराधों के ख़िलाफ़ आंदोलन हुआ. महिला अपराध पर सख़्त कानून की मांग ने ज़ोर पकड़ा। कानून पर विचार के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया गया. नया यौन उत्पीड़न क़ानून बनाया गया और आरोप लगने के साथ ही गिरफ़्तारी की बात रखी गई. आरोपी पर बेगुनाही साबित करने की ज़िम्मेदारी के अलावा.

16 साल से ऊपर के नाबालिगों पर भी क़ानून बदलने की बात की गई. सबसे अहम यह रहा कि मानसिक उम्र के हिसाब से केस चलाने की बात सामने आई. जहां तक उम्र के फैसले की बात आई तो उसकी ज़िम्मेदारी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पर छोड़ा गया.