बलात्कार के बाद गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाज़त नहीं

 09 May 2017  1495
ब्यूरो रिपोर्ट/ in24 न्यूज़, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने रेप के बाद प्रेगनेंट हुई एचआईवी महिला को गर्भपात कराने की इजाज़त नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट ने एम्स की मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट्स को देखने के बाद कहा कि 26 हफ्ते का गर्भ नहीं गिराया जा सकता। एम्स की मेडिकल रिपोर्ट में बाकायदा यह लिखा हुआ है कि इस स्टेज पर महिला का गर्भ गिराने से गर्भवती महिला की जान को खतरा हो सकता है। महिला रेप पीड़ित के साथ निसहाय एचआईवी पॉजिटिव भी है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि वह महिला को रेप विक्टिम स्कीम से 3 लाख रुपये का मुआवजा दे। इस मामले में राज्य सरकार की अथॉरिटी और एजेंसिंयों की तरफ से जो देरी हुई है उसके लिए मुआवजे की रकम कितनी होनी चाहिए, इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट 9 अगस्त को सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्देश पर एम्स मेडिकल बोर्ड की टीम ने महिला का चेक कर के रिपोर्ट्स सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट भेजने के बाद कोर्ट ने 26 हफ्ते का गर्भ गिराने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट के बाद ही कथित फैसला दिया था और राज्य सरकार को आदेश दिया है कि विक्टिम फंड से 4 हफ्ते के भीतर पीड़ित को 3 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
पीड़िता की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा था कि इस मामले में सरकारी अस्पताल ने लापरवाही की है। स्टेट एजेंसी प्रेगनेंसी टर्मिनेशन से संबंधित कानून को सही तरह से नहीं समझ पा रही है और यही कारण है कि महिला के इलाज में देरी हुई और पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रेगनेंसी टर्मिनेट नहीं हो सकी। ऐसे में एक गाइडलाइंस की भी जरूरत है ताकि ऐक्ट का सही तरह से अनुपालन हो और राज्य सरकार की एजेंसी की ओर से जो देरी की गई है उसके लिए महिला को मुआवजा मिले।
 
एम्स मेडिकल बोर्ड की ओर से कोर्ट में महिला के इलाज का पूरा ब्योरा पेश किया जाएगा कि महिला का किस तरह से इलाज किया जाए और बच्चे को एचआईवी  के इन्फेक्शन से कैसे बचाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि महिला के इलाज का खर्चा सरकार करेगी पर इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में उसका इलाज होगा। बिहार सरकार देरी के मामले में कितना मुआवजा दें इस बारे में पहले पीड़िता की ओर से हलफनामा दायर किया जाएगा उसके बाद बिहार सरकार इस पर जवाब दाखिल करेगी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट आगे की सुनवाई करेगी।  साथ ही में महिला को पटना वापस ले जाने की सरकार व्यवस्था करेगी।
 
पीड़ित महिला को फ्लाइट से पटना से दिल्ली लाया गया था और एम्स मेडिकल बोर्ड में उसकी जांच की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला का मेडिकल एग्जामिनेशन करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने आदेश दिए है कि महिला निसहाय है और उसको बचाने की पूरी कोशिश की जाएगी। आपको बता दें कि पीड़िता सड़क पर अपना जीवन-यापन करने वाली महिला है जिसके साथ रेप हुआ और बाद में वह गर्भवती हुई। महिला को इस बात का पता नहीं था कि वह गर्भवती है वह भी 17 हफ्ते से. पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महिला का गर्भपात इसीलिए नहीं किया गया क्योँकि महिला के पास कोई पहचान पत्र नहीं था। महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी चूंकि हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।
वृंदा ग्रोवर ने बताया कि दरअसल ये मामला जनवरी का है। महिला एचआईवी पॉजिटिव है और उसका पति उसे 12 साल पहले ही छोड़ चुका है। महिला सड़क पर जिंदगी गुजारती है इसी दौरान उसके साथ रेप किया गया और महिला गर्भवती हुई। उसे शेल्टर होम ले जाया गया। वहां उसने मार्च में बताया कि वह गर्भवती हो चुकी है और गर्भ रेप के कारण ठहरा है। इसके बाद शेल्टर होम ने वहां रिसर्च करने वाले स्टूडेंट की मदद से महिला को पीएमसीएच भेजा। तब महिला का गर्भ 17 हफ्ते का था। वहां महिला के पिता को बुलाया गया और आई कार्ड मांगा गया। महिला के पास आई कार्ड नहीं था और इस कारण अस्पताल ने प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने से मना कर दिया।
पीएमसीएच में प्रेगनेंसी टर्मिनेट न होने के बाद मामला पटना हाई कोर्ट पहुंचा। पटना हाई कोर्ट में जब केस गया तब तक गर्भ 21 हफ्ते का हो चुका था। हाई कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड का गठन किया। मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट दी कि मामले में बड़ी सर्जरी की जरूरत है और इसमें ब्लीडिंग भी हो सकती है। पटना हाई कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट को देखने के बाद प्रेगनेंसी टर्मिनेशन की इजाजत नहीं दी। वृंदा ग्रोवर ने बताया कि प्रेगनेंसी टर्मिनेशन ऐक्ट के तहत 20 हफ्ते तक रेप आदि के कारण होने वाली प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की इजाजत है, इसके बाद के मामले में कोर्ट की इजाजत से टर्मिनेशन हो सकता है।