गुज़रते वक़्त ने बनाया गुलज़ार

 18 Aug 2017  1560
ज्योति विश्वकर्मा/ in24 news
" किनारा मिला जो किनारा नहीं था, बहाना था कोई सहारा नहीं था
   यही एक पल जिसको समझे थे अपना, न जाने था किसका, हमारा नहीं था "
जिंदगी के फलसफों को शब्दों के जरिये कागज पर उतारने वाले मशहूर शायर ,लेखक, निर्देशक, प्रोड्यूशर, गजलकार, गीतकार गुलजार साहब का आज जन्मदिन है। जाने माने शायर गुलजार का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। उनका जन्म 18 अगस्त, 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में  एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मक्खन सिंह कालरा और माता का नाम सुजन कौर था । चेहरें पे मुस्कान ,शरीर पे सफेद कुर्ता और पायजामा यही इस  शख्सियत की सादगी भरी पहचान है।  गुलजार की कविताओं का जादू ही कुछ ऐसा है कि मुरझाए चेहरे भी खिल उठे। गुलजार का बचपन गुलजार नहीं था ,उनकी नाम की तरह खुशनुमा नहीं था।  बचपन से ही उनके ऊपर से उनके माता-पिता का साया उठ गया था। उनके पिता और बड़े भाई को उनका कविता करना पसंद नहीं था।  फिल्मो में कदम रखने से पहले गुलजार गैरज में मैकेनिक का काम करते थे, जहाँ फुर्सत के आलम में अपनी कलम का जादू बिखेरते थे।  और इस जादू से वो आज हिंदी और उर्दू के साहित्य की एक पहचान बन गए हैं । उन्होंने जब फिल्मो के लिए गाना लिखा तो वो भी मिशाल बन गया। गुलजार 1963 ने बिमल रॉय की फिल्म बंदिनी के लिए लिखे " मेरा गोरा अंग लई ले " गाने से प्रसिद्ध हुए। गुलजार साहब को 20 फिल्मफेयर और 5 राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया हैं । ऑस्कर अवार्ड से पुरस्कृत स्लमडॉग मिलेनेयर के गाने " जय हो " के लिए ग्रेमी अवार्ड से भी गुलजार को 2010 में सम्मानित किया गया। गुलजार ने बड़ो के साथ बच्चों के मनोरंजन में भी कोई कसर नहीं  छोड़ी। बच्चो के पसंदीदा  कार्टून सीरीज  द जंगल बुक का  टाइटल गाना " जंगल जंगल बात चली  हैं " और मोटू - पतलू कार्टून के लिए भी गुलजार ने गाने लिखें हैं।  फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान  दादा साहब फालके अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।  इनकी लेखनी आज भी लाजवाब है।