देवेंद्र फडणवीस का मनोवांछित प्रॉजेक्ट मुंबई - नागपुर एक्सप्रेसवे, संकल्प से सिद्धि

 10 Dec 2022  1012
ब्यूरो रिपोर्ट/in 24न्यूज़
 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस रविवार को हाल ही में बनकर तैयार हुए मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे के एक छोटे से हिस्से का टेस्ट ड्राइव लेने के लिए एक साथ कार में सवार हुए. फडणवीस ने स्टीयरिंग व्हील संभाली हुई थी जबकि उनके बगल वाली सीट पर मुख्यमंत्री शिंदे स्वयं बैठे हुए थे. लेकिन इस दौरान सीएम एकनाथ शिंदे के माथे पर शिकन कोई लकीर नहीं दिखी, क्योंकि मूल रूप से इस प्रोजेक्ट की जो परिकल्पना की गई थी, उस मुंबई-नागपुर राजमार्ग को ‘समृद्धि महामार्ग’ के रूप में भी जाना जाता है. इस प्रोजेक्ट का आइडिया देवेंद्र फडणवीस का ही था. उन्होंने पहली बार साल 2015 में इसकी घोषणा उस समय की थी, जब वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. और एकनाथ शिंदे तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार में बतौर महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (एमएसआरडीसी)- प्रोजेक्ट पर काम करने वाली एजेंसी के प्रभारी थे. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नागपुर से शिरडी तक 520 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस वे के पहले चरण का उद्घाटन करने वाले हैं. समृद्धि महामार्ग की कुल लंबाई लगभग 701 किलोमीटर है, जो इसे राज्य का सबसे लंबा राजमार्ग बनाता है. इसे तैयार करने में तकरीबन 55 हज़र करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. यह मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे के बाद महाराष्ट्र में दूसरा प्रमुख एक्सप्रेस वे होगा. एमएसआरडीसी के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आर. मोपलवार ने एक अखबार को जानकारी देते हुए बताया कि, 'इसमें कोई शक नहीं है कि यह देश की सबसे बड़ी परियोजना है.

       देवेंद्र फडणवीस ने पहले परियोजना के लिए 2019 की समय सीमा निर्धारित की थी. लेकिन भूमि अधिग्रहण में रुकावट और बाद में कोविड-19 महामारी के चलते इसमें देरी हुई. आधिकारिक तौर पर इस हाईवे को 'हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग' के रूप में जाना जाता है. 701 किलोमीटर का मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे 14 जिलों, 6 तालुकाओं और 392 गांवों से होकर गुजरेगा. इसमें 24 इंटरचेंज, 38 पुल होंगे, जिनकी लंबाई 30 मीटर से ज्यादा होगी. इसके अलावा 283 अन्य की लंबाई 30 मीटर से कम होगी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने रविवार को संवाददाताओं से कहा 'यह हाईवे एक ‘गेम-चेंजर’ साबित होगा. 18 घंटे का सफर अब घटकर छह से सात घंटे का रह जाएगा. मुंबई और नागपुर करीब आएंगे और व्यापार बढ़ेगा. इससे किसानों को भी मदद मिलेगी.' यह एक ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट है, जिसका अर्थ है कि यह बिल्कुल नया है और मौजूदा सड़क को चौड़ा या आधुनिकीकरण करके नहीं बनाया गया है. इस एक्सप्रेस वे में आठ लेन तक की विस्तार क्षमता के साथ छह लेन होंगी. खास बात यह भी है कि इससे मराठवाड़ा और विदर्भ के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विकास के अवसरों और व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. महाराष्ट्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी मुंबई और शीतकालीन राजधानी नागपुर के बीच मौजूदा 16 घंटे का सफर भी कम होकर आधा रह जाएगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है.

      एमएसआरडीसी के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आर. मोपलवार ने कहा कि, 'इस परियोजना की पूरी जिम्मेदारी का भार एमएसआरडीसी के ऊपर है. हमने जिलाधिकारियों के साथ काम किया, अपने संचालकों को नियुक्त किया और देखा कि लोग लोग भी इससे जुड़े हुए हैं. हमें डर था कि यदि प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ तो लोगों को नुकसान होगा. लेकिन हम वास्तव में सफल रहे. जब इसे पहली बार 2016-17 में शुरू किया गया था, तब इस परियोजना को किसानों के बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा था. हालांकि राज्य सरकार द्वारा किसानों को उनकी जमीन के लिए बाजार मूल्य से पांच गुना तक देने की भूमि अधिग्रहण नीति में संशोधन के बाद विरोध शांत हो गया था. राज्य सरकार ने कारों के लिए लगभग 1,200 रुपये का टोल प्रस्तावित किया है, जिसके बारे में मोपलवार ने दावा किया कि यह मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर वसूले जाने वाले शुल्क का 60 प्रतिशत है. मोपलवार ने कहा, 'यह टोल उतना ही होगा जितना आप मुंबई-नासिक के लिए भुगतान करते हैं. किसी अन्य समतुल्य एक्सप्रेस वे से पूरी तरह से तुलना करने के लिए कोई डेटा नहीं है. मुंबई-पुणे (एक्सप्रेसवे) 2.95 रुपये प्रति किमी से टोल लेता है, हम 1.72 रुपये प्रति किमी चार्ज कर रहे हैं.' हालांकि प्रोजेक्ट को पूरा होने में काफी देरी हुई है. पहले भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध हुआ था. इसका विरोध करने वालों में शिवसेना भी शामिल थी, जिसने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में इस परियोजना का क्रेडिट लेने के लिए भाजपा के साथ लड़ाई लड़ी थी. कोविड महामारी के कारण भी इसमें काफी देरी हुई. इन्हीं कुछ कारणों के चलते नागपुर और शिरडी के बीच 491 किलोमीटर का हिस्सा पूर्व में घोषित समय सीमा पर पूरा नहीं किया जा सका.