पत्नी अगर पति को बदनाम करती है तो वह क्रूरता है : बॉम्बे हाईकोर्ट

 25 Oct 2022  557

संवाददाता/in24 न्यूज़. 

कुछ पत्नियां अपने पति की आलोचना करने में माहिर होती हैं तो कुछ उनके साथ बुरा व्यवहार के साथ उनका मज़ाक तक उड़ाती है और भद्दे कमेंट से उनका मनोबल तोड़ती रहती हैं, मगर अब उनके लिए बड़ी राहत की खबर सामने आई है। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High) ने कहा है कि आरोपों की पुष्टि किए बिना पति को बदनाम करना और उसे एक महिलावादी और शराबी कहना क्रूरता के बराबर है। पुणे के एक जोड़े की शादी को भंग करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को  बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने 12 अक्टूबर को पारित अपने आदेश में एक 50 वर्षीय महिला द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें पुणे की एक पारिवारिक अदालत द्वारा एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी से उसकी शादी को भंग करने वाले नवंबर 2005 के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट की अपील की सुनवाई के दौरान उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद अदालत ने उसके कानूनी उत्तराधिकारी को प्रतिवादी के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया। महिला ने अपनी अपील में दावा किया कि उसका पति एक महिलावादी और शराबी था और इन बुराइयों के कारण वह अपने वैवाहिक अधिकारों से वंचित थी। पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति के चरित्र के खिलाफ अनुचित और झूठे आरोप लगाने से समाज में उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है और यह क्रूरता है। एचसी ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने अपने बयान के अलावा अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया है। मृतक व्यक्ति के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता महिला ने अपने पति पर झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाकर उसे मानसिक पीड़ा दी थी। अदालत ने परिवार अदालत के समक्ष पति के बयान का हवाला दिया जिसमें उसने दावा किया था कि याचिकाकर्ता ने उसे अपने बच्चों और पोते-पोतियों से अलग कर दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून में एक स्थापित स्थिति है कि क्रूरता को मोटे तौर पर एक ऐसे आचरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो दूसरे पक्ष को इस तरह के मानसिक दर्द और पीड़ा देता है कि उस पक्ष के लिए दूसरे के साथ रहना संभव नहीं होगा। पीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता का पति एक पूर्व सेना का आदमी था, जो एक मेजर के रूप में सेवानिवृत्त हुआ, समाज के ऊपरी तबके से ताल्लुक रखता था और समाज में उसकी प्रतिष्ठा थी। एचसी ने कहा, "याचिकाकर्ता के प्रतिवादी के चरित्र से संबंधित अनुचित, झूठे और निराधार आरोप लगाने और उसे शराबी और महिलावादी के रूप में लेबल करने से समाज में उसकी प्रतिष्ठा खराब हुई है।" अदालत ने कहा कि उपरोक्त पर विचार करते हुए हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता का आचरण हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (आई-ए) के तहत क्रूरता है। बहरहाल, बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से अपनी पत्नियों से परेशान रहनेवाले पतियों को अब राहत की उम्मीद बढ़ सकती है।