ये कैसा पिता ?

 20 Jan 2017  1592

समीरा मंसूरी / in24 न्यूज़

माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया जाता है। माता जननी होती है तो पिता जन्मदाता लेकिन मुंबई से सटे भिवंडी इलाके में रहने वाले एक पिता की दास्तान सुनने के बाद यक़ीनन आपकी रूह कांप जाएगी।  भिवंडी इलाके में रहने वाले शफीक मोमिन ने अपनी तीन औलादों को पिछले छः सालों से एक ऐसे कमरे में कैद कर रखा था जहां सूरज की किरणे भी नहीं पहुंच पाती थी।  उक्त कमरे में गन्दगी का अंबार लगा हुआ था, सांस लेने में बच्चों को काफी दिक्कत हुआ करती थी। सूत्रों के मुताबिक शफीक की पत्नी ने उसे साल 2010 में ही तलाक दे दिया था और तीनों बच्चों को उसने शफीक के पास ही छोड़ दिया था जिसके बाद शफीक ने उन मासूमों पर ज़ुल्म ढाना शुरू कर दिया।  शफीक ने न सिर्फ बच्चों की पढाई छुड़वाई बल्कि उसने हैवानियत का परिचय देते हुए अपनी ही औलादों को एक कमरे में नजरबंद कर दिया जहां न रौशनी थी और न ही सांस लेने के लिए हवा ! जब बच्चों को भूख लगती तो शफीक उन्हें एक टिफिन दे दिया करता जिससे एक ही टिफ़िन से तीनो बच्चे अपनी भूख को शांत करते थे। ऐसे में भिवंडी की पूर्व नगरसेविका रुकसाना तीनो मासूम बच्चों के लिए भगवान साबित हुई।
 रुकसाना को जैसे ही कथित हैवान पिता की हैवानियत का पता चला, उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन की मदद से बंधक बच्चों को उसके हैवान पिता की चंगुल से मुक्त करवाया।  देर रात तक़रीबन 3 बजे के दरमियान रुकसाना कुरैशी पुलिस के साथ शफीक मोमिन के घर पहुंची और उक्त गंदगी से सराबोर अंधेरे कमरे से तीनो बच्चों मोहम्मद, अय्यान और रेहान को रेस्क्यू करवाया। मोहम्मद की उम्र 10 साल है तो अय्यान की उम्र 13 साल के आसपास है जबकि रेहान की उम्र 15 साल के आसपास बतायी जा रही है। रुकसाना कुरैशी जब पुलिस के साथ बंधक बनाये गए बच्चों के पास पहुंची तो उन्होंने पाया कि 15 वर्षीय रेहान के पैर में फ्रैक्चर है जबकि 10 वर्षीय मोहम्मद के पैरों में अंदरूनी चोटें आयी है जिसके बाद फ़ौरन उन्हें इलाज के लिए इंदिरा गांधी अस्पताल में ले जाया गया और भिवंडी शहर पुलिस ने मामला दर्ज कर अपनी जांच शुरू कर दी है। देखते ही देखते यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फ़ैल गयी जिसके बाद चारो तरफ इसी बात की चर्चा है कि अपनी औलाद को लोग अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं लेकिन ये कैसा पिता, जिसने इंसानियत की सभी हदे पर कर हैवानियत का परिचय दिया जिसे हैवान पिता कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।