बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी बिहार की राजनीतिक उलटफेर की स्क्रिप्ट
27 Jan 2024
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ब्यूरो रिपोर्ट/in24न्यूज़/मुंबई
बिहार की राजनीति में जिस तरीके की राजनीतिक उठापटक चल रही है, उससे देश के राजनीतिक हलकों में गहमागहमी मच गई है. लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह से बिहार की राजनीति में उथल पुथल मची है, उसने देश की सियासत में भी हलचल तेज कर दी है. इसका सबसे ज्यादा असर विपक्षी इंडी गठबंधन पर देखने को मिल रहा है. केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ पिछले वर्ष विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में अहम भूमिका अदा करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद चर्चा का केंद्र बन गए हैं. वहीं दूसरी ओर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, बिहार की राजनीतिक उथल पुथल कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कई बार बिहार की राजनीति में अजीबोगरीब बदलाव देखने को मिले हैं. वैसे जानकर बताते हैं कि, बिहार के सियासी घटनाक्रम की दोहरी स्क्रिप्ट पूर्वनियोजित है, जो पिछले साल ही लिखी जा चुकी थी. दोहरी का मतलब, एक तरफ नीतीश कुमार के प्रति भाजपा का सॉफ्ट कॉर्नर, तो दूसरी ओर नीतीश कुमार का इंडिया गठबंधन में अपनी सक्रियता घटा देना. इन सबके बावजूद, बिहार की पॉलिटिक्स में शह और मात का खेल अभी बाकी है. जेडीयू के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार तो सदैव 'फ्रंट फुट' पर खेलते आए हैं. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं का कहना है कि लालू प्रसाद यादव 'भ्रम' में नहीं रहते. इसलिए बिहार की सियासत में कुछ भी संभव है. गौरतलब है कि पिछले कुछ महीने से विपक्षी इंडी गठबंधन में नीतीश कुमार की सक्रियता लगातार कम हो रही थी. गठबंधन के मुख्य एजेंडे और सीट शेयरिंग को लेकर नीतीश हमेशा खामोश नजर आये. पिछले दिनों विपक्षी इंडी गठबंधन की वर्चुअल बैठक में एमके स्टालिन ने संयोजक पद के लिए बिहार के सीएम और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार का नाम सुझाया था. इससे पहले यह चर्चा आगे बढ़ती कि नीतीश कुमार ने खुद ही अपना नाम पीछे हटा लिया. नीतीश कुमार ने कहा कि, वे चाहते हैं कि गठबंधन मजबूती के साथ आगे बढ़े और सभी सहयोगी दलों में एकजुटता बनी रहे. इसके बाद वर्चुअल मीटिंग में मौजूद दलों ने सर्वसम्मति से मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष पद सौंप दिया. जिसके बाद राजनीतिक जानकारों ने इसे नीतीश कुमार की तरफ से लिखी गई स्क्रिप्ट करार दिया था. उसके बाद से ही ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि नीतीश कुमार एनडीए में वापसी कर सकते हैं. इस मामले में एक दूसरी स्क्रिप्ट, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से लिखी नजर आई. जनवरी महीने के पहले सप्ताह में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के सूत्रों ने दावा किया था कि बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए में लाने के लिए बीजेपी कोई भी पहल नहीं कर रही है और आगे भी ऐसा कोई प्रयास नहीं करेगी. अगर कोई खुद से और बिना शर्त पार्टी में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है, तो उस पर विचार किया जाएगा. इससे पहले ये भी कहा गया था कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. अब ये अलग बात है कि बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम एवं राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कह दिया कि, यदि नीतीश कुमार या जेडीयू का सवाल है तो राजनीति में किसी के लिए कोई दरवाजा हमेशा बंद नहीं रहता. जो दरवाजा बंद रहता है, वो खुल भी सकता है. उन्होंने राजनीति को संभावनाओं का खेल बताया. वहीं जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी साफ़ कर दिया कि, नीतीश कुमार कभी भी भ्रम में नहीं रहते. वो फ्रंट फुट पर राजनीति करते हैं. यदि कोई भ्रमित है, तो यह उसकी समस्या है. उनका इशारा, राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को लेकर था. नीतीश के पलटी मारने की स्थिति में लालू प्रसाद यादव अपना नंबर गेम सुरक्षित करने में जुटे हैं. वे थोड़े आश्वस्त इसलिए हैं कि बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी, राष्ट्रीय जनता दल से आते हैं. उन्हें बहुत सोच समझकर ही विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया था. जब विधानसभा में कोई जोड़-तोड़ होती है तो उस स्थिति में स्पीकर का पद अहम रहता है. अगर नीतीश कुमार एनडीए में लौटते हैं, तो उस स्थिति में राष्ट्रीय जनता दल, विधानसभा के भीतर और बाहर, दोनों के लिए रणनीति बना रही है. केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की, तो उसका राजद नेताओं ने श्रेय लेने में देरी नहीं की. कुल मिलाकर बिहार की भ्रमित सियासत से पर्दा उठने में ज्यादा समय नहीं बचा है, ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं या फिर बीजेपी कोई नया दांव खेलेंगी ?