राजनीति में महिलाओं को पूर्ण आज़ादी नहीं

 23 Oct 2018  1027
संवाददाता/in24 न्यूज़. 
लोकतंत्र में हर किसी को अपनी आज़ादी का हक़ प्राप्त है. मगर सियासी सोच में कितना फ़र्क है यह समझना बेहद आसान है कि राजनीति में महिलाओं को चुनाव लड़ने और टिकट हासिल करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और यही वजह है कि राजनीति में अबतक महिलाओं को पूर्ण आज़ादी नहीं मिल पाई है.

यह अलग बात है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी काबिलियत दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, यह भी गौर करनेवाली बात है कि महिलाएं अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल भी हुई हैं., मगर सबसे आश्चर्य की बात यह है कि एक तरफ नारी की सम्मान और समानता की बात करनेवाला पुरुष वर्ग का एक तबका ऐसा भी जो महिलाओं के अधिकार और सम्मान की बात पर अपनी सोच बदलते हुए नज़र आते हैं. जब बात आती है चुनाव की तो यही राजनेता महिलाओं को उम्मीदवारी देने में हिचकिचाते हैं.
 गौरतलब है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी भागीदारी दिए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है, लेकिन आंकड़ों की मानें तो किसी भी राजनीतिक दल में 10 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को उम्मीदवार के रूप में जनता के सामने पेश नहीं किया जाता। 
मध्य प्रदेश में महिला और पुरुष मतदाताओं के बीच तकरीबन 20 लाख का अंतर है, पर टिकट के हिसाब से ये खाई और भी गहरी हो जाती है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो 2003 में 199 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरी थीं, जिनमें से 18 महिलाओं ने जीत दर्ज की थी। 2008 में 221 महिला उम्मीदवारों मे से 21 महिलाएं जीती थीं। 2013 में 200 महिलाओं को टिकट मिला, जिनमें से 30 महिलाओं के सिर जीत हांसिल हुई 
विशेषज्ञों की मानें तो राजनीति में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। बात पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो 2013 में 200 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। भाजपा ने सर्वाधिक 28 महिलाओं पर भरोसा जताया था।
इनमें से 22 ने जीत हासिल की। वहीं, कांग्रेस ने 23 महिला प्रत्याशी उतारे। इनमें छह ने जीत हासिल की। महिलाओं को टिकट देने में बसपा भी बाकी दलों के साथ कदमताल करती नजर आई। बसपा ने 22 महिलाओं को सियासी मैदान में किस्मत आजमाने का मौका दिया और दो ने जीत दर्ज की।