कोयला घोटाले में पूर्व मंत्री को तीन साल की जेल
26 Oct 2020
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संवाददाता/in24 न्यूज़.
कहावत है कि कोयले के धंधे में हाथ काले होते ही हैं. ऐसा साबित हो रहा है पूर्व मंत्री दिलीप रे के मामले में. सीबीआई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे को कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में तीन साल की कैद की सजा सुनाई। दिलीप रे 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। यह मामला झारखंड के गिरिडीह जिले में 105.153 हेक्टेयर गैर-राष्ट्रीयकृत कोयला खनन क्षेत्र के आवंटन से संबंधित है, जो 1999 में कोयला मंत्रालय की 14वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा कैस्ट्रोन टेक्नोलजीज लिमिटेड के पक्ष में आवंटित किया गया था। विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने उस समय कोयला मंत्रालय के तत्कालीन दो वरिष्ठ अधिकारियों- प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्या नंद गौतम और कैस्ट्रोन टेक्नोलजीज लिमिटेड के निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल को भी तीन-तीन साल की सजा दी। सीबीआई ने पहले अदालत से राय और अन्य दोषियों को आजीवन कारावास की सजा देने का आग्रह किया था ताकि समाज में सफेदपोश अपराध करने वालों को चेतावनी मिले। दोषियों ने अदालत से अनुरोध किया कि वह उनकी उम्र को देखते हुए उनके प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाए। 6 अक्टूबर को अदालत ने मामले में उन्हें दोषी ठहराया था और कहा था कि इन लोगों ने कोयला ब्लॉक के आवंटन की खरीद को लेकर एक साथ साजिश रची थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे दिलीप रे के अलावा, कोयला मंत्रालय के दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप कुमार बनर्जी, तत्कालीन अतिरिक्त सचिव और नित्यानंद गौतम, पूर्व सलाहकार (परियोजनाएं), और कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रोन माइनिंग लिमिटेड को भी दोषी पाया गया है। अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120बी (आपराधिक साजिश) 409 (आपराधिक विश्वासघात) और धारा 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया। इसके अलावा, कैस्ट्रन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के महेश कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रन माइनिंग लिमिटेड को भी भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के लिए 379 (चोरी की सजा) और 34 (आम इरादे) के तहत दोषी ठहराया गया था। मामले में 51 गवाहों की जांच की गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तथ्यों और परिस्थितियों ने स्पष्ट रूप से निजी पार्टियों और जन सेवकों द्वारा आपराधिक साजिश रचने की बात कही है। सीनियर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ए.पी. सिंह ने अदालत को बताया था कि ब्रह्मडीह कोयला ब्लॉक निजी पार्टियों को आवंटित किए जाने के तौर पर पहचाना गया जो कि कैप्टिव कोल ब्लॉक नहीं था, यहां तक कि स्क्रीनिंग कमेटी भी किसी कंपनी को ये कोल ब्लॉक आवंटित नहीं कर सकती थी। मगर भ्रष्टाचार के खेल का सच आज देश के सामने आ ही गया.