नहीं रहे सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय, 75 वर्ष की आयु में ली आखिरी सांस

 15 Nov 2023  368
संवाददाता/in24 न्यूज़
 

सहारा समूह के चेयरमैन सुब्रत रॉय का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. सहाराश्री ने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। सुब्रत रॉय का निधन 75 साल की उम्र में हुआ। सहारा प्रमुख पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। भारत के प्रमुख व्यवसायियों में से एक सुब्रत रॉय अलग-अलग व्यावसायिक हितों वाले समूह सहारा इंडिया के संस्थापक, प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष थे। उन्हें 'सहाराश्री' के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने 1978 में सहारा इंडिया परिवार की स्थापना की थी। उनके निधन पर कई राजनीतिक दलों ने शोक जताया है। सहारा इंडिया की तरफ से बताया गया कि सहाराश्री एक प्रेरणादायक नेता और दूरदर्शी शख्सियत थे,। मेटास्टैटिक स्‍ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से पैदा हुई बीमारियों के साथ एक लंबी लड़ाई के बाद कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट के कारण 14 नवंबर 2023 को रात 10.30 बजे उनका निधन हो गया। मिली जानकारी के मुताबिक सहाराश्री के स्वास्थ्य में गिरावट के बाद 12 नवंबर को उन्हें कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल और मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया था। वह बीते काफी लंबे समय से गंभीर बीमारी से परेशान थे. हैरानी की बात यह है कि वह अपने अंतिम समय में परिवार का भी साथ नहीं पा सके. दरअसल सहारा समूह के चेयरमैन सुब्रत राय अपने पीछे पत्नी स्वप्ना राय और दो बेटों सुशांत और सीमांतो को छोड़ गए हैं. जो की बीते कई सालों से विदेश में रह रहे हैं. ऐसे में जब सुब्रत रॉय बीमारी के कारण मुंबई शिफ्ट हुए उस वक्त भी उनका परिवार उनके साथ नहीं रहा. वहीं जीवन के अंतिम समय में सभी उनका परिवार उनके साथ नहीं रहा.

      बिहार के अररिया जिले के रहने वाले सुब्रत रॉय को पढ़ने में कुछ खास मन नहीं लगता था। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई कोलकाता में हुई और फिर वो गोरखपुर पहुंच गए। साल 1978 में सुब्रत रॉय ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर स्कूटर पर बिस्कुट और नमकीन बेचने का काम शुरू किया। एक कमरे में दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ उन्होंने दो लाख करोड़ रुपये तक का सफर तय कर किया। दोस्त के साथ मिलकर उन्होंने चिट फंड कंपनी शुरू की। उन्होंने पैरा बैंकिंग की भी शुरुआत की। उन्होंने हमेशा गरीब और मध्यम वर्ग को टारगेट किया। मात्र 100 रुपये कमाने वाले लोग भी उनके पास 20 रुपये जमा करते थे। देश की गलियों-गलियों तक उनकी ये स्कीम मशहूर हो गई। लाखों की संख्या में लोग सहारा के साथ जुड़ते चले गए। हालांकि साल 1980 में सरकार ने इस स्कीम पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन तब तक काफी लोगों ने इसमें निवेश किया था। सभी निवेशकों के पैसे बाद में फंस गए।