अम्मा के चले जाने से तमिलनाडु अनाथ !

 02 Jan 2017  1858
अम्मा के चले जाने से तमिलनाडु अनाथ ! ब्यूरो रिपोर्ट / in24 न्यूज़ भारतीय राजनीति में अपना लोहा मनवाने वाली "अम्मा" नाम से मशहूर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जयरामन भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी यादें हमेशा तमिलनाडु की जनता के दिलों में बसी रहेगी।  पांच बार तमिलनाड की मुख्यमंत्री रही जयललिता के जीवन का सफरनामा बेहद रोचक और उतार -चढाव से भरा रहा।  जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को पुराने मैसूर राज्य के मांड्या जिले के मेलुरकोट गांव के एक तमिल परिवार में हुआ।  बचपन में जयललिता जब महज दो साल की थी उसी समय उनके पिता का निधन हो गया, उसके बाद उनकी मां उन्हें अपने साथ बेंगलुरु ले आयी।  वैसे तो जयललिता एक कामयाब वकील बनना चाहती थी लेकिन उनकी नसीब में कुछ और बनना लिखा था।  छोटी सी उम्र में ही जयललिता का संघर्ष शुरू हो चुका था। परिवार का गुजारा चलाने के लिए जयललिता की मां ने तमिल फिल्मो में काम करना शुरू किया।  जयललिता ने बेंगलुरु के बिशप कॉटन स्कूल में अपनी पढाई शुरू किया। छोटी सी उम्र में ही जयललिता की मां ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए राजी करवा लिया। उन्होंने 'एपिसल' नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। महज 15 साल की उम्र में ही जयललिता ने कन्नड़ फिल्मों में मुख्या भूमिकाएं की।  उसके कुछ ही समय बाद उन्होंने तमिल फिल्मो में अपनी शानदार एंट्री की।  मशहूर अभिनेता शिवाजी गणेशन के साथ उनका करियर सफलता के शीर्ष पर पहुंच गया।  जयललिता  कामयाब वकील बनना चाहती थी लेकिन उनके करियर की शुरुवात फिल्मो से हुई और देखते ही देखते जयललिता तमिलनाडु की राजनीति के शिखर पर पहुंच गयी।
उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों में उस दौर के सभी सुपरस्टारों के साथ काम किया। शिवाजी गणेशन के अलावा जयशंकर, राज कुमार, एन टी रामाराव और एमजी रामचंद्रन यानी एमजीआर के साथ उन्होंने कई फिल्में कीं। शिवाजी गणेशन के साथ उनकी फिल्म 'पट्टिकाडा पट्टनामा' के लिए जयललिता को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। फिल्मों में काम करने के साथ उन्होंने भरतनाट्यम, कथक, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी, पियानो और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। जयललिता ने तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया। उनकी कामयाबी और शोहरत को चार चांद उस समय लगे जब उन्होंने एमजी रामचंद्रन और एमजीआर के साथ 28 फिल्मों में काम किया। जयललिता और एमजीआर की जोड़ी कामयाब जोड़ी मानी जाती थी। हालांकि, कुछ समय बाद एमजीआर राजनीति में आ गए और उनके साथ जयललिता भी राजनीति में आ गईं। उन्होंने कुल मिलाकर 140 फिल्मों में काम किया। एमजीआर ने 1972 में आॅल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की स्थापना की थी। साल1982 में जयललिता ने भी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करके अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। साल1983 में वे पार्टी की प्रमुख प्रचारक बनीं और बतौर विधायक भी चुनी गईं। फिल्मों की तरह उनका राजनीति करियर भी बेहद शानदार रहा है। लगभग आठ बार विधानसभा का चुनाव लड़ने के बाद वे एक बार राज्यसभा के लिए मनोनीत हुईं और पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी। जयललिता ने पहला चुनाव तिरुचेंदूर सीट से जीता , साल 1984 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा गया। उनके राजनीतिक करियर में मुश्किलों की शुरुआत उस समय हुई जब 1988 में एमजीआर का निधन हो गया। एमजीआर की शवयात्रा के समय एमजीआर की पत्नी ने समर्थकों के साथ जयललिता के साथ कथित दुर्व्यवहार भरा बर्ताव किया। एमजीआर के देहांत के बाद उनके परिवार वालों ने जयललिता को घर में नहीं घुसने दिया। जयललिता किसी तरह कोशिश करके एमजीआर के शव तक पहुंच गई तो उन्हें तरह तरह से अपमानित किया गया। उन पर हमला भी किया गया। इसके बाद जयललिता ने शव यात्रा में भाग नहीं लिया और वापस अपने घर आ गईं। जयललिता के इस सार्वजनिक अपमान के साथ पार्टी में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। एक तरफ थीं जयललिता और दूसरी तरफ थीं एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन जिसकी वजह से पार्टी इन दो खेमों में बंट गई। जयललिता ने खुद को एमजीआर का राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, लेकिन उनके गुट के छह विधायकों को विधानसभा में अयोग्य करार दिया। वर्चस्व की यह जंग फौरी तौर पर जानकी रामचंद्रन ने जीत ली और वे मुख्यमंत्री बन गईं। 1989 में विधानसभा चुनाव हुआ तो जयललिता के गुट ने 27 सीटें जीतकर नेता विपक्ष बनीं। इसी दौरान तमिलनाडु विधानसभा जो हुआ, वह बसपा नेता मायावती के साथ हुई घटना से काफी मिलता जुलता है। 25 मार्च 1989 को विधानसभा में डीएमके और अन्नाद्रमुक के सदस्यों में सदन में ही हाथापाई हो गई। इसी हाथापाई के दौरान जयललिता पर हमला हुआ और उनके साथ भी बदतमीजी की गई। उनके कपड़े फट गए. जयललिता अपने फटे कपड़े के साथ ही बाहर आईं और इसके लिए सत्ता पक्ष को जिम्मेदार ठहराया। उन पर सत्तापक्ष के हमले ने जनता की सहानुभूति का रुख उनकी तरफ मोड़ दिया। साल1991 के विधानसभा चुनाव में जयललिता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और 234 में से 225 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बन गईं। इसके बाद वे पांच बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं। गरीबों और आम आदमी के पक्ष में तमाम योजनाएं चलाकर और उनके लिए काम करके जयललिता ने खूब लोकप्रियता बटोरी। उनके समर्थक उन्हें 'अम्मा' और 'क्रांतिकारी नेता' कहकर पुकारते हैं। मुश्किल और कठोर फैसलों के लिए जानी जाने वाली जयललिता को 'आयरन लेडी' और 'तमिलनाडु की मार्गरेट थैचर' जैसे विशेषणों से भी नवाजा जाता है। हालांकि 1996 में उनकी पार्टी हार गई।  2001 में उन्होंने फिर सत्ता में वापसी की। इसी दौरान उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में मुकदमा चला और उन्हें जेल हो गई। हालांकि, हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद मार्च 2002 में वे फिर से मुख्यमंत्री बन गईं। साल 2011 में उन्होंने फिर चुनाव जीतकर मुख्यममंत्री बनने में कामयाबी हासिल की। इस दौरान सितंबर, 2014 को 100 करोड़ के भ्रष्टाचार के मामले में उनको चार साल की जेल हो गई। वे सीएम पद के लिए अयोग्य हो गईं। इसके बाद उनके बेहद करीबी और विश्वासपात्र ओ पन्नीरसेल्वम ने सत्ता संभाली। अक्टूबर, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी और उनकी सजा सस्पेंड कर दी। मई, 2015 में मद्रास हाईकोर्ट ने उनकी उनपर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। 23 मई 2015 को जयललिता फिर से मुख्यमंत्री बन गईं। मई, 2016 में उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में वापसी की। उनके राजनीतिक करियर, उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर बात हो सकती है, लेकिन उनकी कल्याणकारी योजनाओं ने उनकी छवि मसीहा के रूप में गढ़ी है। उनके समर्थकों द्वारा पोस्टरों में उन्हें देवी के रूप में चित्रित किया जाता है। सस्ते खाने की कैंटीन, अम्मा रसोईं, सस्ता नमक, दवाखाना, पानी की बोतल, सीमेंट आदि के साथ जुड़े 'अम्मा' शब्द ने उनकी छवि गढ़ने और उन्हें लोकप्रिय बनाने में बेहद अहम रहे हैं।  देश की इस राजनीतिक विभूति का इस तरह से चले जाना भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान माना जा रहा है।  जयललिता की अंतिम इच्छा यही थी कि मरणोपरांत उनके पार्थिव शरीर को दफनाया जाये इसलिए उनके शव को मरीना बीच पर उनके राजनीतिक गुरु एमजी रामचंद्रन की समाधि के पास पूरे राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। जयराम जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और देश की सबसे ताकतवर महिला राजनेताओं में शुमार थी। उनकी अंतिम यात्रा राजाजी हॉल से शुरू होकर मरीना बीच तक पहुंची जिसमे उनके चाहने वालों का जनसैलाब उमड़ पड़ा।  हर किसी की आंखे गमगीन थी। जिस अम्मा के लिए तमिलनाडु की जनता अपना सबकुछ लुटाने को तैयार थी आज उसी अम्मा के चले जाने से मानो समूचा तमिलनाडु आज अनाथ बन कर रह गया।