बसपा के नेता क्यो छोड़ रहे हैं यूपी में मायावती का साथ?

 25 Feb 2024  664

ब्यूरो रिपोर्ट/in24न्यूज़/मुंबई 

देश में इन दोनों बड़े पैमाने पर राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है, जबकि लोकसभा चुनाव 2024 को महज चंद महीने ही बचे है. ऐसे में यूपी में सबसे ज्यादा सियासी सरगर्मी तेज है. सभी दल अपनी- अपनी ताकत झोंकने में लगे हैं. वहीं बसपा की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं, चुनाव से ठीक पहले बसपा सुप्रीमो मायावती का साथ उनके अपने ही छोड़ रहे हैं. यूपी में लोकसभा चुनाव एनडीए बनाम इंडिया के शोर में बसपा सुप्रीमो मायावती का अपने दम पर चुनाव लड़ना उसके अपने ही सांसदों को रास नहीं आ रहा है, शायद यही वजह है कि इसी बेचैनी में उनके अपने ही सांसद उनका साथ छोड़ कर मजबूत ठौर की तलाश में हैं. सांसद रितेश पांडेय के इस्तीफे के बाद कई और नामों पर चर्चांएं हैं. दरअसल बसपा ने साल 2019 के चुनाव में सपा से गठबंधन पर 10 सीटें जीती थीं. लोकसभा चुनाव के लिए इस बार एनडीए से मुकाबले के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया गया है. सूत्रों का कहना है कि बसपा के मौजूदा सांसदों और लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगे नेताओं को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी भी किसी न किसी गठबंधन में शामिल होगी, लेकिन मायावती द्वारा बार-बार यह कहा जाना कि वह अपने दम पर ही चुनाव लड़ेंगी और गेम चेंजर साबित होंगी, शायद इस पर उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा है. बसपा सांसद दानिश अली हाल ही में कांग्रेस के साथ नजर आए. यही वजह मानी जा रही है कि मौजूदा अधिकतर सांसदों के नए ठौर की तलाश में लगे होने की चर्चाएं तेज है. अमरोहा से सांसद दानिश अली बसपा से निलंबित होने के बाद खुलकर कांग्रेस के साथ दिखाई दे रहे हैं . मुरादाबाद में शनिवार को वह कांग्रेस की भारत जोड़े न्याय यात्रा में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ नजर आए. गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी को सपा अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. इनके अलावा कई और सांसद भी हैं जो दूसरे दलों में ठिकाना तलाश रहे हैं और उनके मंचों को साझा कर रहे हैं. जौनपुर के श्याम सिंह यादव और लालगंज की सांसद संगीता आजाद के बारे में भी चर्चाएं चल रही हैं. सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान सांसद हैं, लेकिन बसपा ने वहां से माजिद अली को लोकसभा प्रभारी घोषित कर रखा है. बिजनौर के सांसद मलूक नागर भी भाजपा के पिछले बजट की तारीफ करने के बाद चर्चा में हैं. श्रवास्ती के सांसद राम शिरोमणि वर्मा के बारे में भी चचार्एं हैं. ऐसे में यह देखना अब दिलचस्प होगा कि बसपा अपने कितने सांसदों को रोक पाने में कामयाब हो पाती है और आगामी लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में अपने आप को कितना मजबूत कर पाती है.