हिजाब महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट बनाता है -  तसलीमा नसरीन

 17 Feb 2022  1367

संवाददाता/ in24 न्यूज़ 

 

कर्नाटक (karnatak) में हिजाब विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. एक स्थानीय स्कूल से उठा यह विवाद पहले राष्ट्रीय फिर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया. अब इस मामले में मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन (Taslima Nasreen) ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. इस बारे में तसलीमा नसरीन का कहना है कि हिजाब एक ऐसा परिधान है जो महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट बना देता है। इसके साथ ही तसलीमा ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की भी वकालत की।

अंग्रेजी वेबसाइट फर्स्टपोस्ट.कॉम को दिए एक इंटरव्यू में तसलीमा नसरीन ने कहा, एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक शैक्षणिक संस्थान को अपने छात्रों के लिए सेक्यूलर ड्रेस कोड अनिवार्य करने का अधिकार है। स्कूल और कॉलेज छात्रों को अपनी धार्मिक पहचान घर पर रखने के लिए कहा जाता है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। स्कूलों में धार्मिक कट्टरता, कट्टरवाद और अंधविश्वास के लिए जगह नहीं हो सकती। स्कूलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता, उदारवाद, मानवतावाद और वैज्ञानिक सिद्धांतों को पढ़ाया जाना चाहिए।

तसलीमा ने हिजाब विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि हिजाब, नकाब और बुर्का का एक ही उद्देश्य है महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में बदलना। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि महिलाओं को पुरुषों से छिपाने की जरूरत है जो उन्हें देखकर लार टपकाते हैं। यह महिलाओं के लिए बहुत ही अपमानजनक है। इस प्रथा को जल्द से जल्द बंद कर देना चाहिए।

हिजाब के इस्लाम से जुड़े होने के सवाल पर तसलीमा ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि हिजाब (hijab) इस्लाम से जुड़ा है या नहीं। उन्होंने कहा, मुद्दा यह है कि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं और सातवीं सदी में बने कानून अभी लागू नहीं हो सकते हैं और होने भी नहीं चाहिए। तसलीमा ने कहा कि हमें यह भी समझने की जरूरत है कि बुर्का और हिजाब कभी भी एक महिला की पसंद नहीं हो सकते। उन्हें तभी पहना जाता है जब विकल्प छीन लिए जाते हैं। यह अक्सर परिवार के सदस्य होते हैं जो अपनी महिलाओं को बुर्का / हिजाब पहनने के लिए मजबूर करते हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि बुर्का/हिजाब कभी भी किसी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न अंग नहीं हो सकता।

इसके अलावा तसलीमा ने समान यूनिफॉर्म सिविल कोड (uniform civil code) की वकालत करते हुए कहा कि, किसी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। धर्मनिरपेक्ष राज्य में किसी भी समुदाय के लिए अलग व्यक्तिगत कानून क्यों होना चाहिए? उन्होंने कहा कि सभी को, विशेष रूप से मुसलमानों को, यह समझना चाहिए कि मुख्यधारा का हिस्सा बनकर वे गरीबी, लैंगिक और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आसानी से लड़ सकते हैं।