नहीं मिला बहुमत, तो कभी नहीं होगी युति - उद्धव ठाकरे

 05 Feb 2017  1570

संजय मिश्रा / in24 न्यूज़

मुंबई महानगरपालिका चुनाव में बीजेपी से नाता तोड़ लेने वाली शिवसेना ने अब आगामी किसी भी निकाय चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है।  युति टूटने पर गंभीर शिवसेना पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने गढ़ मुंबई पर विशेष ध्यान देने का मन बनाया है। उद्धव ठाकरे 12 फरवरी तक मुंबई शहर में चुनाव प्रचार करेंगे जहां तक़रीबन 19 रैलियों को वे संबोधित करेंगे।  ठाणे, नासिक, पुणे और पिम्परी चिंचवड़ में वे 13 से 17 फरवरी के दरमियान चुनावी रैली करेंगे। शनिवार की शाम प्रचार अभियान की शुरुवात करते हुए सबसे पहले उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा।
उद्धव ठाकरे की बातों से इस बात के साफ संकेत मिले हैं कि यदि मुंबई महानगरपालिका चुनाव के नतीजे उम्मीद से कम शिवसेना के खाते में आये तो चुनाव के पश्चात वो कभी बीजेपी के साथ युति नहीं करेगी। उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से अपनी लड़ाई को 'दोस्ताना मुकाबला' नहीं बताया।  उन्होंने उन तमाम अटकलों को सिरे से ख़ारिज कर दिया जिसमे इस बात की चर्चा हो रही थी कि, खंडित जनादेश न आने के लिए बीजेपी के साथ मिलकर शिवसेना चुनाव लड़ती है। भारतीय जनता पार्टी के साथ तल्ख़ रिश्तों के बीच शिवसेना ने 'एकला चलो' की तर्ज पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या दोनों पार्टियों की नीति कारगर साबित होगी या फिर केंद्र और राज्य की सरकारों में शामिल दोनों भगवा पक्षों के बीच विभाजन हो जायेगा ?
राजनीतिक पंडितों में इस मामले को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है कि चुनाव के बाद यदि सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों पार्टियों को आपस में हाथ मिलाने की जरुरत पड़ी तब क्या होगा ? इसके साथ ही राजनीतिक विद्वानों ने अंदेशा जताया है कि चुनाव में हो सकता है कि दोनों पार्टियों को इस तल्खी की एक बड़ी कीमत चुकानी पड़े। वैसे बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि, जिस तरह लोकसभा और विधानसभा में उन्हें जनादेश मिला है उसी तर्ज पर इस बार भी स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को भारी सफलता मिलेगी। चूंकि बीजेपी यही मानती है कि जो मोदी लहर साल 2014 में पूरे भारत वर्ष में थी, वही लहर अब भी बनी हुई है।  वहीं दूसरी ओर, शिवसेना अपने मुंबई जैसे बाल किले को किसी दूसरे के हाथों में नहीं जाने देना चाहती। कुलमिलाकर बीजेपी और शिवसेना की यह चुनावी लड़ाई सिर्फ चुनाव तक सिमित नहीं रह गयी। अब सवाल अपने अस्तित्व को बचाने और अपनी शान बरक़रार रखने की है, जिसे बचा पाने में शिवसेना और बीजेपी कितनी कामयाब होगी यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।