ब्यूरो रिपोर्ट/in24 न्यूज़
भारत का उपनगरीय रेल नेटवर्क घाटे के कारण बर्बाद हो रहा है अगर देखा जाए तो निवेश, क्षमता विस्तार के साथ-साथ संवर्धित सुरक्षा मानकों की बात की जाए तो प्रशासन उसकी लगातार अनदेखी कर रहा है। मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली मुंबई लोकल ट्रैन नेटवर्क फिलहाल देश का सबसे ख़राब और बुरा उपनगरीय नेटवर्क है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2010 से दिसम्बर 2014 के बिच भारतीय रेल नेटवर्क पर 33,445 मौतों हुई जिसमे में से अकेले मुंबई में उपनगरीय रेल नेटवर्क पर 17,638 मौत हुई। आकड़ो पर अगर नज़र डाले तो मुंबई में वर्ष 2015-16 के बिच करीब 271 करोड़ यात्री मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क में सफर किये। जाहिर है इतनी बड़ी संख्या को काबू करने के लिए मात्र फुट ओवर ब्रिज ही नहीं बल्कि दुर्घटना के दौरान चिकित्सक की व्यवस्था भी चाहिए। तो क्या लाखो करोड़ो का बुलेट ट्रैन में निवेश पर रोक होनी चाहिए जिससे भारतीय रेल के बुनियादी सुविधा पर निवेश हो सके?
अगर देखा जाए तोह भारत की रेल नेटवर्क एशिया की सबसे बड़ी नेटवर्क है,जाहिर है फंड की कमी सरकार के पास नहीं ,लेकिन व्यवस्था की कमी होने की वजह आए दिन रेल हादसे होते रहते है। अगर आकड़ो पर नज़र डाले तो 2010 -15 के बीच , ट्रेनों की संख्या में 100 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ जिसकी वजह से उसकी ट्रैफिक से ज्यादा उसकी परिचालन पर खर्च हुआ। देखा जाए तो उपनगरीय ट्रैन नेटवर्क एक परिवहन का साधन है लेकिन इसके लिए कोई अलग से संगठन नहीं बना जिसकी वजह से उपनगरीय नेटवर्क पर कभी ध्यान केंद्र्ति नहीं किया गया। रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने कहा, निवेश का पैसा राजस्व से आता है, कमाई से आता है , इसके लिए कोई विशेष पूंजी नहीं रहती, जिसकी वजह से उसके रेलवे सुरक्षा पे खर्च नहीं हो पाता,क्यूंकि अगर सुरक्षा पे भी खर्च किया जाता तोह यात्रिओ से वापसी का भी दर लगाया जाता। उन्होंने बताया की निवेश के नाम पर बड़े बड़े खर्चे रेलवे सुरक्षा के लिए था, लेकिन इसका इस्तेमाल सही ढंगे से नहीं बना। इसलिए पूंजीगत व्यय का 8 लाख करोड़ रुपए, जिसे सरकार जिसे सरकार की ओर से अगले कुछ सालों में निवेश के तौर पर बताया जा रहा है।
यात्रिओं का किराया 2014-15 से बढ़ोतरी नहीं हुई और यह दी जा रही सुविधाओं से भी कम है ,जिसके बाद रेलवे अतिरिक्त रूप से 50 से ज्यादा वाले यात्रियों की श्रेणी में 10 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक की छूट बड़ा दी है ,लेकिन 2015 -16 में यात्रियों छूट से 1602 करोड़ की गिरावट आई है लेकिन यात्रियों से हो रहे नुक्सान की भरपाई मालढुलाई से होती आ रही थी,और उसी वर्ष आकड़ो के अनुसार नगरीय और उपनगरीय रेल नेटवर्क में 35,038 करोड़ रुपए का नुक्सान देखा गया, जो यात्रियों की सेवाओं से आयी हुई 43 फीसदी है। साथ ही मालभाड़े में भी रेलवे का नुक्सान हुआ क्यूंकि इसके किराए दर ऊँची कर दी गयी थी, जिससे यह पता चलता है की रैलवया की हालत फिलहाल सुस्त है और इसके सुरक्षा कार्यो पर तुरंत निवेश किये जाने की आव्यशकता है।
कही ना कही आमदनी घटने की वजह से श्रमिकों पर निर्भरता बढ़ता नज़र आ रहा है , जिन्हे सुरक्षा प्रक्रियाओं का ज्यादा समझ नहीं और इसकी वजह से रेलवे सुरक्षा का रिकॉर्ड पर असर पड़ रहा है। अगर रेलवे पर पर्याप्त राशि ना निवेश की जाए तो ऐसे ही दुखद घटना घटती जाएगी और इसपर गहराई से पुर्नविचार भी करना जरुरी है।