पिता अपनी बेटी को गुजारा-भत्ता देना बंद नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

 24 Jul 2022  379

संवाददाता/in24 न्यूज़.
पिता जब लाचार और मजबूर हो जाता है तब औलाद का फ़र्ज़ है कि उनकी देखभाल के प्रति गंभीर हों और पिता की भी ज़िम्मेदारी होती है कि वह यथासंभव अपनी औलाद की आर्थिक मदद करे, मगर आज के दौर में बहुत से लोग ऐसा करने से बचते हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अनोखा फैसला दिया है। एक पिता पुत्री के बीच दूरी बहुत बढ़ जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक अभिभावक की तरह बेटी को बाप से मिलवाया और बाप को आठ हजार रुपये प्रतिमाह का मुआवजा देने का आदेश दिया। बेटी अपने पिता से पिछले 33 वर्षों से बात नहीं कर रही थी। अदालत ने कहा कि बेटियां जिम्मेदारी नहीं हैं बल्कि जिम्मेदारियों को कम करने वाली हैं। शीर्ष अदालत ने 33 वर्षीया बेटी से कहा कि वह मेहनत से पढाई करे और इस व्यक्ति (पिता) पर निर्भर न रहे। न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने पिता से कहा कि आप जानते हैं कि आपकी बेटी ने न्यायिक परीक्षा (प्रारंभिक) पास की है और वह जज बन गई तो क्या आपको गर्व नहीं होगा! अदालत ने पिता से कहा कि आप कहते हैं कि वह आपसे बात तक नहीं करती। आप सिर्फ शिकायत कर रहे हैं, आप जानते ही नहीं कि आपकी बेटी कितनी प्रतिभावान है। आप कहते हैं कि बेटी बोझ है। आप जरा संविधान का अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष बराबरी का अधिकार) ठीक ढंग से पढिए। अदालतों ने महिलाओं के अधिकारों पर कई फैसले दिए हैं। आश्चर्य है कि साल 2022 में भी लोगों की सोच नहीं बदल पाई है। मामला आंध्र प्रदेश का है। पिता के वकील ने कहा कि दोनों ने पिछले कई वर्षों से एक-दूसरे से बातचीत नहीं की है। इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की पीठ ने पिता के वकील से कहा कि आप अदालत का अधिकारी होने के नाते दोनों को कैंटीन में ले जाएं और उन्हें बात करने दें। पक्ष का वकील न बनें रहें। अदालत के आदेश से इतना तो हो ही सकता है। पिता ने कहा कि उन्होंने गुजारा भत्ते का भुगतान कर दिया है। इस संबंध में उन्होंने बैंक का स्टेटमेंट दिखाया। दरअसल यह मामला तब आया जब पिता ने बेटी को गुजारा-भत्ता देना बंद कर दिया। अदालत ने 2020 में पिता को आदेश दिया था कि वह बेटी और पत्नी को 2.5 लाख रुपये अदा करें। लेकिन उन्होंने यह नहीं दिया। इस दौरान 2021 में मां की मृत्यु हो गई थी। बहरहाल, यह फैसला उनलोगों के लिए बेहद अहम है जो अपनी बेटी के साथ भेदभाव करते हैं।