बीहड़ में लगा सुरों का मेला
30 Dec 2022
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धर्मेंद्र नाथ ओझा/in24 न्यूज़.
बीहड़ नाम सुनकर ही अलग एहसास होता है, मगर बीहड़ से ही सुरों का मेला की खबर सामने आई है। "बाबुल मोरा नैहर छूटो री जाए" उपशास्त्रीय गायन में निपुण डॉ रीता देव ने राग भैरवी पर आधारित जब इस ठुमरी को छेड़ा... दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट ने सर्द रात में गर्माहट ला दी। तानसेन संगीत समारोह 2022 के समापन का यह आखिरी गायन था। ग्वालियर के ऐतिहासिक गुजरी महल परिसर में रात एक बजे तक संगीत के रसिक सुर और राग की बारिश में भींगते रहे। 1924 में तानसेन संगीत समारोह की शुरुआत सिंधिया राजघराने द्वारा शुरू की गई। ग्वालियर के हिजरा इलाके में स्थित तानसेन की समाधि और उनके गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे के प्रांगण में उर्स के नाम पर शास्त्रीय गायन का यह समारोह शुरू किया गया। जो ढाई दिन का होता था। हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद यह समारोह तीन दिन के लिए आयोजित किया जाने लगा। 2012 के बाद उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी और मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा आयोजित यह तानसेन संगीत समारोह तीन दिन से बढ़ाकर पांच दिन का कर दिया गया। तानसेन संगीत समारोह वास्तव में गंगा जमुनी तहजीब की अदभुत मिसाल है। समारोह की शुरुआत तानसेन की समाधि पर हरिकथा और मीलाद शरीफ से होती है। ढोलीबुआ महाराज संत श्री सच्चिदानंद नाथ एवं उनके साथी द्वारा हरिकथा की जाती है। उसके बाद मौलाना इकबाल एवं उनके साथी द्वारा मीलाद शरीफ की जाती है। उसके बाद शहनाई वादन होता है। इस समारोह में शामिल होना ही गायकों और वादकों के लिए एक प्रतिष्ठा की बात है। जो गायक एक बार इस संगीत समारोह में प्रस्तुति देता है उसका दूसरी बार नम्बर पांच साल बाद आता है। पहली बार मैं इस समारोह में शामिल हुआ था। जब हम अकादमी की गाड़ी से ग्वालियर के तानसेन रेसीडेंसी होटल पहुंचे जहां हमारे लिए कमरे बुक थे। हमारे आस पास के कमरे से बांसुरी वादक शशांक सुब्रमण्यम निकल रहे हैं तो दूसरे कमरे से वायलिन वादक अनुप्रिया देवताले तो तीसरे कमरे से इंदौर घराने की शिल्पा मसूरकर। हर साल की तरह मेहमान, पत्रकार, अधिकारीगण, शास्त्रीय वादक और शास्त्रीय गायकों के रहने की व्यवस्था तानसेन रेसीडेंसी होटल में ही होता है। हमारे जाने से पहले हंसराज हंस, परवीन सुल्ताना और विश्वमोहन भट्ट जैसे दिग्गज इस संगीत समारोह की शोभा बढ़ा चुके थे। ग्वालियर की हवा में संगीत घुला हुआ महसूस हो रहा था। शाम को हम ग्वालियर के हजीरा इलाके में स्थित तानसेन की समाधि पर पहुंचे। कई एकड़ में फैली समाधि के प्रांगण में लाइटिंग की हुई तानसेन समारोह की बड़ी बड़ी होर्डिंग्स खड़ी है जहां खड़े होकर दर्शक अपनी तस्वीरें खिंचवा रहे हैं। पांच कदम आगे टेंट की बनी गैलरी में तानसेन और दरबारी संगीत पर बनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी चल रही है। थोड़ी दूर आगे जाने पर तानसेन के गुरु मोहम्मद गौस का भव्य मकबरा पर लाइटिंग की गई है और उसके दाहिनी तरफ लाल, पीली, नीली रौशनी में मियां तानसेन की समाधि चमक रही है। समाधि के सामने टेंट से बना संगीत दरबार हॉल के दोनों गेट से स्त्री, पुरुष और बच्चे हॉल में दाखिल होते हैं। जहाँ वे तरतीब से लगी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। वहां आगे की कोई वीआईपी सीट आरक्षित नहीं है जो पहले आया कुर्सी उसकी। सामने मंच पर विश्वसंगीत समागम, तानसेन समारोह के अक्षर ग्रीन लाइट में दमक रहे हैं। मंच पर अर्जेंटीना से आया देसमाद्रे ऑर्केस्टा अपनी धुनें बजाना शुरू करता है और दर्शक झूमने लगते हैं। उसके बाद पंडित शशांक सुब्रमण्यम का बांसुरी वादन श्रोताओं को मोहित कर गया। बांसुरी पर कर्नाटक संगीत का ऐसा रस घुला कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए। रात साढ़े ग्यारह बजे तक संगीत कार्यक्रम खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन श्रोताओं का पंडाल में चट्टान की तरह जमे रहने से शास्त्रीय गायक और वादक का उत्साह इतना बढ़ जाता कि कार्यक्रम रात डेढ़ बजे तक समाप्त होता है। अगले दिन सुबह का कार्यक्रम ग्वालियर से 40 किलोमीटर दूर तानसेन की जन्मस्थली बेहटा में आरंभ होता है। गांव से बाहर पहाड़ की तराई में एक खुले और बड़े चबूतरे पर गांव वाले श्रोता के रूप में कुर्सियों पे बैठे हुए हैं। सामने स्टेज पर ग्वालियर घराने के विनय बंदे और प्रणव के तबले की जुगलबंदी पर लोग बार बार तालियां बजाते हैं। कहते हैं शास्त्रीय संगीत अमीर और जानकार लोगों की थाती है जबकि गांव के अनपढ़ और माल मवेशी चरानेवाले लोगों को शास्त्रीय संगीत पर झूमते हुए देखकर मुझे लगा कि संगीत के लिए बुद्धिवादी नहीं बल्कि रुहानी दिल चाहिए। संगीत सारे बुद्धि, शिक्षा, अमीर, गरीब और सरहद को पार करके लोगों के दिल में उतर जाता है। ये बीहड़ के लोग हैं थोड़े निर्मम और कठोर माने जाते हैं लेकिन संगीत ने उन निर्मम और कठोर हृदय से भी रसधारा बहा दिया। चंबल के डाकुओं को भी वैसे संगीत से बेहद लगाव रहा है। 98 वें तानसेन समारोह की ख़ासियत यह रही है कि ग्वालियर से बाहर बटेश्वर, शिवपुरी, दतिया में भी संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया। ग्वालियर से जाकर शास्त्रीय गायकों और वादकों ने उन इलाकों में भी लोगों को सुर सागर में डुबोया। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर श्री राहुल रस्तोगी ने बताया कि हमने तानसेन संगीत समारोह में काफी नए चीज जोड़ते जा रहे हैं। मसलन हमने तानसेन संगीत समारोह से एक दो दिन पहले पूर्वरंग के रूप में 'गमक' के नाम से लोकप्रिय गायक जैसे हंसराज हंस और मालिनी अवस्थी के उपशास्त्रीय गायन का आयोजन करते हैं। गमक एक तरह से लोगों को शास्त्रीय संगीत से रूबरू कराने का एक पूर्वाभ्यास है। अकादमी द्वारा ललित कला संस्थान, ग्वालियर के सहयोग से रंग संभावना नाम से पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसके अलावे राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय कैम्पस में 'वादी संवादी' द्वारा साहित्य और संगीत सर्जना एवं रियाज और मंच प्रदर्शन पर गोष्ठी हुई। श्री राहुल रस्तोगी एक ऊर्जावान अधिकारी होते हुए हमेशा नई सोच रखते हैं बातों बातों में उन्होंने बताया कि 'तानसेन संगीत समारोह के कुछ कार्यक्रम हम अगले साल मंदिरों के प्रांगण में आयोजित करना चाहते हैं । क्योंकि हिन्दुस्तान में संगीत कार्यक्रम की शुरुआत ही मंदिरों से हुई थी।' इस विश्वसंगीत समागम के संगीत संध्या का समापन समारोह ग्वालियर के प्रसिद्ध गुजरी महल में सम्पन्न हुआ। गुजरी महल राजा मानसिंह तोमर और रानी मृगनयनी की प्रेम की निशानी है। मृगनयनी अपने गुरु बैजू बावरा से इसी ग्वालियर में संगीत सीखा था। शिल्पा मसूरकर का गायन और अनुप्रिया देवताले का भावविभोर करने वाला वायलिन प्रस्तुति में दर्शक डूबते उतराते नज़र आने लगे। अनुप्रिया का वायलिन ऐसे बज रहा था मानो सिर्फ़ वादन नहीं बल्कि गायन भी कर रहा हो। सच में तानसेन संगीत समारोह भारत के समृद्ध विरासत का संवर्धन करने वाला एक अद्भुत आयोजन है।