निर्भया केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की याचिका खारिज की
18 Dec 2019
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संवाददाता/in24 न्यूज़.
निर्भया केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की याचिका खारिज कर दी है कर मौत की सज़ा बरकरार रहेगी. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित निर्भया मामले में चार दोषियों में से एक अक्षय कुमार सिंह उर्फ अक्षय ठाकुर द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका बुधवार को खारिज कर दी. मामले की सुनवाई जस्टिस भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच कर रही थी. निर्भया मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा, कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें मानवता रोती है और यह मामला उन्हीं में से एक है. उन्होंने कहा कि दोषी किसी भी तरह की उदारता का हकदार नहीं है और भगवान भी ऐसे दरिंदे को बना शर्मसार होगा. जो होना तय है उससे बचने के लिए निर्भया मामले के दोषी कई प्रयास कर रहे हैं और कानून को जल्द अपना काम करना चाहिए. इससे पहले आज सुबह बेंच ने अक्षय के वकील एपी सिंह को दलील के लिए आधे घंटे का वक्त दिया. अक्षय के वकील ने जांच पर सवाल उठाते हुए तिहाड़ के पूर्व विधि अधिकारी सुनील गुप्ता की किताब का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि इस किताब में राम सिंह की आत्महत्या पर सवाल उठाए गए हैं. सिंह ने रेयान इंटरनेशनल केस में स्कूल छात्र की हत्या का उदाहरण दिया. उन्होंने दलील दी कि इस मामले मैं बेकसूर को फंसा दिया था. अगर सीबीआई की तफ्तीश नहीं होती तो सच सामने नहीं आता. इसलिए हमने इस केस मे भी सीबीआई जैसी एंजेसी जैसे जांच की मांग की थी. दोषी अक्षय के वकील एपी सिंह ने दलील दी कि राम सिंह के बिसरा रिपोर्ट में अल्कोहल मिला था. जेल में राम सिंह को शराब कैसे मिली? पुलिस ने इस तथ्य की जांच क्यों नहीं की. राम सिंह की संदिग्ध मौत की जांच होनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि कलयुग में लोग केवल 60 साल तक जीते हैं जबकि दूसरे युग में और ज़्यादा जीते थे. दिल्ली में वायु प्रदूषण और पानी की गुणवक्ता बेहद खराब है, ऐसे में फांसी की सजा क्यों ? मौत की सजा एकमात्र समाधान नहीं है, सुधार के लिए मौका दिया जाना है. यह सजा का उद्देश्य है. एपी सिंह ने कहा कि सरकार भी मानती है कि दिल्ली की हवा बेहद खराब है डॉक्टर बाहर जाने की सलाह देते. अक्षय को फांसी नहीं दी जाए. उन्होंने नैतिक और कानूनी दो दलीलें दीं. नैतिक दलील देते हुए अक्षय के वकील ने कहा कि मानवाधिकार का कहना है कि आप अपराधी को मार सकते हैं, अपराध को नहीं...भारत ने जीवन को पवित्र माना जाता है. यह हिंसा का कार्य है. गरीब ही केवल मौत की सजा के शिकार होते हैं जबकि अमीर फांसी पर नहीं चढ़ते.