मिलिए लॉकडाउन के श्रवण कुमार से
17 May 2020
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संवाददाता/in ,24 न्यूज़.
आज के दौर में क्या कोई श्रवण कुमार की कल्पना कर सकता है! शायद नहीं. मगर कोरोना वायरस के हमले और लॉकडाउनके बीच एक पिता को अपने बच्चों के लिए श्रवण कुमार बनना पड़ा. कोरोना वायरस के चलते किए गए देशव्यापी लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर परेशान है. उनके पास न तो पैसा बचा है और ना खाने पीने का कोई सामान. जिसके चलते उनके सामने सिर्फ पलायन ही एक विकल्प बचा है. लाखों मजदूर रोजाना पैदल-पैदल ही अपने घरों की तरह बढ़ रहे हैं. ऐसी ही एक खबर ओडिशा से आई है. जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे. दरअसल, ओडिशा में एक आदिवासी मजदूर अपने दो बच्चों को कंधे पर लादकर 160 किलोमीटर दूर अपने घर पहुंच गया. मामला ओडिशा के मयूरभांज जिले का है. जहां दिहाड़ी मजदूरी करने वाले रूपया टुडू अपने परिवार के साथ अपने घर मयूरभंज जिले से 160 किलोमीटर दूर जाजपुर जिले में एक ईंट भट्ठे में काम करते थे. जब लॉकडाउन के बाद उन्हें घर वापस लौटना पड़ा, तो टुडू के कंधे पर न सिर्फ परिवार को खिलाने-पिलाने का बोझ था, बल्कि अपने दोनों बच्चों को कंधे पर टांग कर ले जाना पड़ा. बता दें कि कुछ महीने पहले, मयूरभंज जिले के मोराडा ब्लॉक के बलादिया गांव में रहने वाले आदिवासी टुडू ईंट भट्ठे पर काम करने के लिए जाजपुर जिले के पनीकोइली गए थे. लॉकडाउन के बाद भट्टा के मालिक ने काम बंद कर दिया और उन्हें उनका पैसा देने से इनकार कर दिया. जब उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखा तो टुडू अपने परिवार संग पैदल ही घर के लिए निकल पड़े. मगर उनके साथ समस्या थी कि अपने दो बेटों को कैसे पैदल लेकर चलें. जिनमें से एक की उम्र चार साल और दूसरे की ढाई साल है. उसके बाद वह अपने दोनों बच्चें के लिए श्रवम कुमार बन गए. उन्होंने दो बड़े बर्तनों को बांस के डंडे से जरिए रस्सी से बांधा और इसमें अपने बेटों को रख दिया. फिर टुडू ने उन्हें कंधे पर लटकाया और 120 किलोमीटर की यात्रा तय कर दी. शनिवार को वो अपने घर पहुंच गए. टुडू का कहना है कि, 'मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं था, इसलिए मैंने पैदल ही अपने गांव जाने का फैसला लिया. हमें गांव पहुंचने के लिए सात दिनों तक पैदल चलना पड़ा. कई बार बच्चों को कंधे पर लटकाकर इस तरह यात्रा करना दुखद होता था लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं था. गांव में टुडू और उनके परिवार को क्वारंटीन सेंटर में रखा गया है, मगर वहां उनके लिए खाने की व्यवस्था नहीं है. ओडिशा सरकार के क्वारंटीन प्रोटोकॉल के मुताबिक, उन्हें क्वारंटाइन सेंटर में 21 दिन और अगले सात दिन घर में बिताने होंगे. जब क्वारंटाइन सेंटर में भोजन की व्यवस्था न होने की बात सामने आई तो शनिवार को मयूरभंज जिले के बीजद अध्यक्ष देबाशीष मोहंती ने टुडू के परिवार और वहां रहने वाले अन्य श्रमिकों के लिए खाने का इंतजाम कराया.