लोकतंत्र पर हावी होता भीड़तंत्र
10 Nov 2017
1978
आज के समाज में क्या मानवता जैसी कोई चीज़ बची है ? ये सवाल मैं आपसे नहीं पूछ रहा, ये सवाल कहीं न कहीं अपने आप से है और ये सवाल मन क्यों उठा उसके पीछे का कारण भी उतना ही साफ़ और स्पष्ट है जितना ये सवाल का जवाब। जवाब हर किसी के पास है, लेकिन ये जवाब सीने में ही दफ़्न रहे तो बेहतर, क्योंकि ये जवाब अगर बाहर आएगा, तो ये हमारे नकारेपन और सामाजिक नपुंसकता को बेपर्दा कर सकता है। जाहिर तौर पर ऐसा होना समाज के हर व्यक्ति के लिए ठीक नहीं होगा। क्योंकि इस महान देश में हर समाज का एक चेहरा है और इस चहरे का कई रूप है इसमें राजनीती भी है , हिंसा भी है , भावनाए भी हैं और नाटक भी है कुल मिलाकर अगर आप देखोगे तो भारत में समाज का केनवास बहुत ही विशाल है। और हो भी क्यों ना ? आख़िरकार सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ ही सबसे पुरानी परंपरा होने का ढिंढोरा भी तो हम ही पीटते हैं।
....... बहरहाल
राजनीतिक हिंसा और हिंसा पर राजनीती ने देश का कितना नुक्सान किया है, ये बैठकर सोचने की फुर्सत किसी को नहीं है। हैरानी तो तब होती है , जब समाज के तथाकथित ठेकेदार देश में समाज को हो रहे नुकसान से बेपरवाह नज़र आते हैं। तकलीफ तो तब होती है जब ये पता चलता है, कि समाज के इन ठेकेदारों ने बड़ी संख्या में लोगों को भरमा रखा है, लेकिन आप क्या कीजिएगा ? आप तो समाज के उन वर्गों में आते हैं, जो समाज को जागरूक करना चाहते है, लेकिन ये आपकी बदकिस्मती है या इस देश की विडम्बना, जो भी कह लीजिए, इस देश की अधिकतर आबादी आप ही के वर्ग को नहीं समझ पाती।
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इस देश में करीब 65 फीसदी आबादी को मीडिया के कर्तव्य की जानकारी ही है और उन 65 प्रतिशत में 10 फीसदी लोग अपने आप को पत्रकार कहते हैं इस समाज में ऐसे लोग भी हैं जो महज कानून के उल्लंघन के लिए और गुंडागर्दी करने के लिए प्रेस का कार्ड बनवाते हैं और ऐसे भी लोग हैं जो इन लोगों को कार्ड बनाकर देते हैं। ये भारत यूँ ही महान नहीं है, इसकी महानता के पीछे बड़े महारथियों की मेहनत है, वैसे आपको किसी को दोष देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अगर आप इस समाज का हिस्सा हैं, तो आपकी जवाबदेही कौन तय करेगा ? लेकिन उम्मीद किसी से भी मत कीजियेगा, क्योंकि ये वो देश है जहां लोगों को आज भी ये पता नहीं है हम गुलाम क्यों थे और हमें आजदी कैसे मिली, वैसे एक बात कहूं , गुलाम तो हम आज भी हैं, क्योंकि असली आजादी तो तब मिलेगी अपनी जरुरत की लड़ाई में भीड़ को पैसे से न खरीदना पड़ेगा ...........