सुप्रीम कोर्ट का फैसला, तीन तलाक असंवैधानिक !

 22 Aug 2017  1382

ब्यूरो रिपोर्ट / in24 न्यूज़

तीन तलाक मामले में देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका ने अपना अंतिम फैसला सुना दिया। तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए सर्वोच्च न्यायपालिका ने अगले 6 महीने तक उस पर रोक लगा दी। न्यायपालिका ने केंद्र सरकार से कहा है कि इस मामले में वह संसद में कानून बनाये।  वैसे तीन तलाक की वैधानिकता पर पिछले कई महीनों से अलग-अलग बाते की जा रही थी जिस पर आखिर कार सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि यह मुसलमानो की 1400 साल पुरानी प्रथा है हालांकि जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएएफ नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने एक बार मे तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया और इसे खारिज कर दिया।

तीनों जजों ने 3 तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। हालांकि, दोनों जजों ने माना कि यह पाप है। अगर 6 महीने के अंदर तीन तलाक पर कानून नहीं लाया जाता है तो तीन तलाक पर रोक जारी रहेगी।

इस पर सुनवाई तो कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर शुरू की थी, लेकिन बाद में छह अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुईं जिसमें से पांच में तीन तलाक को रद्द करने की मांग है। मामले में तीन तलाक का विरोध कर रहे महिला संगठनों और पीड़िताओं के अलावा इस पर सुनवाई का विरोध कर रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत ए उलेमा ए हिंद की ओर से दलीलें रखी गईं। केंद्र सरकार ने भी इसे महिलाओं के साथ भेदभाव बताते हुए रद करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान पीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था कि क्या शादी के वक्त ही मॉडल निकाहनामे में महिला को तीन तलाक न स्वीकारने का विकल्प दिया जा सकता है।

बोर्ड ने कोर्ट को बताया था कि निकाह के समय न सिर्फ लड़की को तीन तलाक को न कहने के विकल्प की जानकारी दी जाएगी, बल्कि मॉडल निकाहनामा में इसे एक विकल्प के तौर पर भी शामिल किया जाएगा। कोर्ट के कहने पर बोर्ड ने इस संबंध में हलफनामा भी दाखिल किया था। आपको बता दें कि इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट के फैसले से पहले तीन तलाक की पीड़िता और याचिकाकर्ता शायरा बानो ने कहा कि मुझे लगता है कि फैसला मेरे पक्ष में आएगा।

समय बदल गया है और एक कानून जरूर बनाया जाएगा। पूर्व अटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह एक बड़ा दिन है, देखते हैं कि क्या फैसला आता है। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर की पीठ ने एक बार में तीन तलाक की वैधानिकता पर बहस सुनी। इस पीठ की खासियत यह भी है कि इसमें पांच विभिन्न धर्मों के अनुयायी शामिल हैं। हालांकि यह बात मायने नहीं रखती, क्योंकि न्यायाधीश का कोई धर्म नहीं होता। कोर्ट ने शुरुआत में ही साफ कर दिया था कि वह फिलहाल एक बार में तीन तलाक पर ही विचार कर रहा है। बहुविवाह और निकाह-हलाला पर बाद में विचार किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में दलीलें दी थी कि तीन तलाक महिलाओमें के साथ भेदभाव है और इसे तत्काल; ख़त्म किया जाये। उनकी ये भी दलील थी कि महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है जबकि पुरुषों को मनमाना हक दिया गया है। मुस्लिम धर्मग्रंथ कुरान शरीफ में तीन तलाक का जिक्र ही नहीं है। अंत में उन्होंने ये दलील देकर कोर्ट से गुहार लगायी कि यह गैरकानूनी और असंवैधानिक हैऔर इस पर तत्काल रोक लगायी जाये। वहीं दूसरी तरफ कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत ने ये दलीलें दी कि तीन तलाक भले ही अवांछित है लेकिन यह वैध है इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता।
यही नहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से यह दलील भी दी गयी कि तीन तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा है इसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि यह 1400 साल से चल रही प्रथा है जो एक प्रकार से मुस्लिमों के लिए आस्था का विषय है, संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा। पर्सनल लॉ में इसे मान्यता दी गई है। तलाक के बाद उस पत्नी के साथ रहना पाप है। धर्मनिरपेक्ष अदालत इस पाप के लिए मजबूर नहीं कर सकती। पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता।

 इस मामले में कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से ये दलील दी गयी कि तीन तलाक महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी और गरिमा से जीवन जीने के हक का हनन है। पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत 22 देश इसे पहले से ही ख़त्म कर चुके हैं इसके साथ ही केंद्र सरकार की तरफ से यह भी दलील दी गयी कि यह धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार में संरक्षण नहीं दिया जा सकता।  सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों का संरक्षक है। कोर्ट को विशाखा की तरह फैसला देकर इसे खत्म करना चाहिए। यदि कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी।

तमाम दलीलों को सुनने के बाद माननीय न्यायाधीश महोदय ने कहा कि जो चीज ईश्वर की नजर में पाप है वह इंसान द्वारा बनाए कानून में वैध कैसे हो सकती है। कोर्ट ने दोहराया कि क्या तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। क्या निकाहनामे में महिला को तीन तलाक को न कहने का हक दिया जा सकता है। यदि हर तरह का तलाक खत्म कर दिया जाएगा तो पुरुषों के पास क्या विकल्प होगा। बहरहाल देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने तीन तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला तो सुना दिया लेकिन सविधान के अनुसार यह अंतिम फैसला नहीं माना जा सकता अभी दो विकल्प मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पास सुरक्षित है पहला रिव्यु पेटिशन और दूसरा क्यूरेटिव पेटिशन जिसमे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम पर्सनल लॉ चुनौती दे सकता है।