देश के 45 वें नए चीफ जस्टिस बने दीपक मिश्रा
28 Aug 2017
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ज्योति विश्वकर्मा / in24news
मुम्बई के 93 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ मध्य रात्रि में सुनवाई करने तथा निर्भया दुष्कर्म कांड के दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखने वाले व देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के आदेश देने वाले न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने आज सुप्रीम कोर्ट के 45 वें मुख्य न्यायधीश के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद के लिए शपथ दिलाई, जस्टिस मिश्रा ने पूर्व मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर की जगह ली है। 63 साल के जस्टिस मिश्र की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर हुई है।
वह 13 महीने के कार्यकाल के बाद 2 अक्टूबर 2018 को रिटायर होंगे। साल 1953 में जन्मे मिश्र ने फरवरी 1977 में वकील के तौर पर करियर की शुरुवात की थी। उन्होंने लंबे समय तक उड़ीसा हाई कोर्ट और सर्विस ट्रिब्यूनल में संवैधानिक, सिविल, क्रिमिनल, राजस्व, सर्विस और सेल्स टैक्स समेत कई मामलों में वकालत की। साल 1996 में वो उड़ीसा हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त हुए और अगले साल उनका तबादला मध्य प्रदेश हो गया। साल 1997 खत्म होते-होते वह स्थायी जज बन गए। 23 दिसंबर , 2009 को जस्टिस मिश्रा ने पटना कोर्ट का कार्यभार संभाला और 24 मई , 2010 को वह दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर नियुक्ति हुई । 10 अक्टूबर , 2011 को उनका प्रमोशन हुआ और वह सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए। केरल के सबरीमाला मंदिर के द्वार महिला श्रद्धालुओं के लिए खोलने के आदेश भी जस्टिस मिश्र ने ही दिए थे।
जस्टिस दीपक मिश्रा का नाम सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक फैसले के लिए लिया जाता है। बात उन 5 फैसलों की करते है जी सबसे ज्यादा चर्चित है।
1- सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान अनिवार्य
30 नवंबर, 2016 को जस्टिस दीपक मिश्र की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ही यह आदेश दिया था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद तमाम लोग खड़े होंगे।
2 - निर्भया कांड में सुनाया था बड़ा फ़ैसला
बहुचर्चित निर्भया गैंगरेप केस में दोषियों को फांसी की सजा बरक़रार रखनेवाली बेंच की अगुवाई भी जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही की थी। 2012 में दिल्ली म,इ चलती बस में युवती के साथ गैंगरेप हुआ था।
3 - FIR की कॉपी 24 घंटों में वेबसाइट पर डालने के आदेश
7 सितंबर, 2016 को जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस सी नगाप्पन की बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि एफ़आईआर की कॉपी 24 घंटों के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। इससे पहले जब जस्टिस मिश्र ने दिल्ली के चीफ़ जस्टिस थे, 6 दिसंबर, 2010 को उन्होंने दिल्ली पुलिस को भी ऐसे ही आदेश दिए थे, ताकि लोगों को बेवजह चक्कर न काटना पड़े।
4 - देर रात खोला अदालत और बरकार रही याकूब मेमन की फांसी
साल 1993 के मुंबई धमाकों में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन ने ठीक फांसी के पहले अपनी सजा पर रोक लगाने की याचिका लगायी थी। इस मामले में 29-30 जुलाई 2015 की मध्यरात्रि को अदालत खुली और सुनवाई हुई , जिसमे याकूब को फांसी की सजा बरक़रार रखी गयी। भारत के इतिहास में पहली बार देर रात सुनवाई करनेवाले 3 जजों में जस्टिस दीपक मिश्रा भी शामिल थे। दलीलें सुनने के बाद सुबह 5 बजे जस्टिस मिश्रा ने फैसला सुनाया था कि फांसी के आदेश पर रोक लगाना न्याय की खिल्ली उड़ाना होगा इसलिए याचिका रद्द की जाती है। इसके कुछ घंटों बाद याकूब को फांसी दे दी गई थी।
5 - आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता बरकरार
13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखने का आदेश सुनाया, उसमें जस्टिस मिश्र भी शामिल थे। यह फ़ैसला सुब्रमण्यन स्वामी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल व अन्य बनाम यूनियन के केस में सुनाया गया था। बेंच ने स्पष्ट किया था कि अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है।