ईद उल जुहा, कुर्बानी का पर्व
02 Sep 2017
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ब्यूरो रिपोर्ट / in24 न्यूज़
ईद उल जुहा के मौके पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने देशवासियों को बधाई दी है.देशभर में आज ईद उल जुहा का पर्व मनाया बकरी ईद के इस मौके पर सुबह से ही देश के अलग-अलग इलाकों में लोगों ने मस्ज़िदों में बकरीद की नमाज़ अदा की और एक दूसरे को मुबारकबाद दी. आज के दिन देश के विभिन्न मस्जिदों में तड़के ही लोग नमाज अदा करने पहुंचे. इस दिन कुर्बानी देने की मान्यता होती है। आज के दिन लोग बकरे की कुर्बानी देने के बाद एक दूसरे को दावत देकर ईद-उल-जुहा की बधाई देते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मस्जिदों में खासी रौनक देखने को मिल रही है । विभिन्न मस्जिद कमेटियों ने जुमा की नमाज के बाद बकरीद की नमाज का वक्त तय कर दिया था आपको बता दे की आज का दिन कुर्बानी के लिए जाना जाता है. त्याग और बलिदान का यह त्योहार कई मायनों में खास है और एक विशेष संदेश देता है. इस दिन बकरे की बलि दी जाती है लेकिन इसके पीछे मकसद ये समझाने की होती है कि हर इंसान अपने जान-माल को अपने भगवान की अमानत समझना चाहिए और उसकी रक्षा के लिए किसी भी त्याग या बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए.
ईद-उल-जुहा (बकरीद) को अरबी में ईद-उल-जुहा कहते हैं. अजगा या जुहा का अर्थ है सुबह का वक्त यानी सूरज चढ़ने से सूरज के ढलने के बीच का समय. इस त्योहार को रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है.
हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तत्पर हो जाने की याद में इस त्योहार को मनाया जाता है.अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए कहा. हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुम्बा (भेड़) था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था.
तब से ही विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं. अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जि़बह किया (काटा) जाता है. इसलिए भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश में इसे 'बकरी ईद' बोलते हैं. ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना, अरबी में 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं मतलब इस मौके पर भगवान इंसान के बहुत करीब हो जाता है. इसलिए इस दिन हर वो मुसलमान जो एक या अधिक जानवर खरीदने की हैसियत रखता है, वो जानवर खरीदता है और क़ुर्बान करता है. इसका गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है, एक हिस्सा गरीबों के लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालों के लिए और एक हिस्सा अपने लिए होता है, जिस तरह से ईद पर गरीबों को ईदी दी जाती है, ठीक उसी तरह से बकरीद पर गरीबों को मांस बांटा जाता है.