लॉकडाउन में मक्का किसानों की टूटी कमर

 25 May 2020  754

संवाददाता/in24 न्यूज़.  
लॉकडाउन ने अन्नदाताओं को बेहाल करके रखा है. इसका सबसे बड़ा नुकसान किसानों को ये हुआ कि मक्के का वाजिब दाम मिलना असंभव सा हो गया है. इससे उनकी आर्थिक कमर टूट गई है. इसका कारण है कि मक्के की औद्योगिक मांग नदारद है, जबकि उत्पादन में नया रिकॉर्ड बना है। मक्का ही नहीं, गेहूं, चावल समेत मोटे अनाजों के उत्पादन में भी इस साल नया कीर्तिमान बनने का अनुमान है। ऐसे में एवजी मांग निकलने की भी कोई गुंजाइश नहीं है। देश में बिहार एक ऐसाराज्य है, जहां साल के तीनों सीजन-खरीफ, रबी और जायद के दौरान मक्के की खेती होती है। लेकिन प्रदेश में मक्के की सबसे ज्यादा पैदावार रबी सीजन में होती है। बिहार में कोसी की कछारी मिट्टी मक्के की पैदावार के लिए काफी उर्वर है और पिछले साल ऊंचा भाव मिलने से किसानों ने मक्के की खेती में इस साल काफी दिलचस्पी ली थी। लेकिन किसानों को पिछले साल के मुकाबले आधे दाम पर इस बार मक्का बेचना पड़ रहा है। बिहार के मधेपुरा जिला के महाराजगंज निवासी पलट प्रसाद यादव ने पांच दिन पहले 1050 रुपये क्विंटल मक्का बेचा। यादव ने बताया कि मक्का उगाना इस साल घाटे का सौदा रहा, जिन किसानों ने गेहूं की खेती की थी उनको लाभ हुआ है। गेहूं प्रदेश में 1850-2000 रुपये क्विंटल बिक रहा है, लेकिन मक्के की बमुश्किल से लागत वसूल हो रही है। उन्होंने बताया कि पिछले साल उनके गांव में मक्का 1600-2200 रुपये प्रतिक्विंटल तक बिका था। बिहार के पूर्णिया जिला स्थित गुलाबबाग कृषि उपज मंडी देश में मक्के के कारोबार के लिए पूरे देश में चर्चित है, जहां से ट्रक व रेल रूट से देश के दूसरे राज्यों में मक्के की सप्लाई होती है। गुलाबबाग मंडी के एक बड़े कारोबारी के मुंशी सिकंदर चौरसिया ने बताया पिछले साल की तरह इस साल मक्के की मांग नहीं है, इसलिए दाम 1150-1200 रुपये प्रतिक्विंटल चल रहा है। उन्होंने बताया कि जब रेक लोडिंग होती है, तो दाम थोड़ा ऊंचा हो जाता है। मक्के के कारोबारी संतोष गुप्ता ने बताया कि पोल्ट्री इंडस्ट्री की मांग नहीं के बराबर है और स्टार्च इंडस्ट्री की मांग भी सुस्त है। उन्होंने कहा कि मांग की तुलना में इस साल आपूर्ति ज्यादा है, जबकि पिछले साल देश में कैटल फीड, पोल्ट्री फीड उद्योग की मांग तेज होने के कारण विदेशों से मक्के का आयात करने की नौबत आ गई। लेकिन इस बार जहां पशुचारा उद्योग, खासतौर पोल्ट्री फीड इंडस्ट्री में मक्के की खपत मांग तकरीबन शून्य हो गई है क्योंकि कोरोना की सबसे बड़ी मार पोल्ट्री उद्योग पर पड़ी है, जहां अंडे और मुर्गे की कीमत उनकी लागत से कम हो गई है। बिहार के सिवान जिला स्थित भगवानपुर हाट के पोल्ट्री कारोबारी दूधकिशोर सिंह ने बताया कि इस समय एक अंडा पर लागत जहां 3.20 रुपये है, वहां उसकी कीमत तीन रुपए। ऐसे में 20 पैसे नुकसान पर अंडा बेचना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि कई सारे पोल्ट्री फॉर्म बंद हो गए हैं।