मकान हासिल करने के लिए 48 साल तक इंतजार, कोर्ट ने राज्य सरकार से किया सवाल

 12 Nov 2023  555

संजय मिश्रा/in24न्यूज़/मुंबई

पुनर्वास योजना के तहत फ्लैट हासिल करने के लिए एक परिवार को लगभग आधी सदी तक इंतजार करना पड़ा. इस लंबे इंतजार में पीड़ित परिवार की दो पीढ़ियां गुजर गई और तीसरी पीढ़ी ने कोर्ट से न्याय की मांग की, जिससे हाई कोर्ट के न्यायाधीश भी हैरान हो गए. मुंबई के परेल गांव स्थित पटेल वाड़ी इलाके में एक 16 मंजिला इमारत का निर्माण हुआ, जिसमें एक परिवार को फ्लैट दिया जाना था लेकिन लगभग 48 साल बीत गए पीड़ित परिवार को फ्लाइट का कब्जा नहीं मिल पाया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में कड़ी फटकार लगाते हुए म्हाडा को आदेश दिया कि पीड़ित परिवार की दो पीढ़ियां गुजर गई, अब तीसरी पीढ़ी को तत्काल फ्लैट का कब्जा दिया जाए. मुंबई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पाटिल और कमल खाता की पीठ ने कहा कि याचिका कर्ता और उसके परिवार ने एक पुनर्वास के लिए फ्लैट का आवेदन किया, जिसमें आवंटन के लिए पूरे 48 साल बीत गए. कोर्ट को बार-बार यह बताया जाता है कि यह फ्लैट किसी भी समय पीड़ित परिवार को आवंटित कर दिया जाएगा, लेकिन अब यह कहा जा रहा है कि उक्त फ्लैट पीड़ित परिवार को आवंटित नहीं किया जा सकता क्योंकि विचाराधीन आवास 579 वर्ग फीट का है जबकि याचिकाकर्ता का हक केवल 300 वर्ग फुट है. मुंबई हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने हैरानी जताते हुए सरकार से सवाल किया कि आखिर यह किस तरह की सरकार और किस तरह का प्रशासन है ? क्या सरकार इसी तरह से अपनी नागरिकों के साथ व्यवहार करती है ? न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने कहा कि इस पूरे मामले में साल 2010 से लेकर साल 2023 तक कुछ नहीं हुआ. वास्तव में न्यायपालिका के लिए यह एक बड़ी बात है. 

    34 वर्षीय रविंद्र भटूसे की याचिका के मुताबिक नवंबर 1975 में उनके दादा को भायखला के जेनब मंजिल में उनका 106 वर्ग फुट का कमरा खाली करने के लिए प्रशासन की ओर से नोटिस जारी किया गया था. यह नोटिस एंटॉप हिल पारगमन शिविर में भेज दिया गया था. उन्हें साल 2018 में दूसरी बार बेदखल किया गया क्योंकि पारगमन भवन बुरी तरह से जीर्ण शीर्ण हो चुका था. आखिरकार जब उन्हें आवास नहीं दिया गया तो वह अपने गांव चले गए. याचिकाकर्ता रविंद्र भटूसे के अनुसार अक्टूबर 2007 में उनके दादा और जुलाई 2009 में उनकी दादी की मौत हो गई. इससे पहले जनवरी 1996 में उनके बेटे की मौत हुई थी, जो अपने पीछे विधवा और पोते रविंद्र को छोड़ गए थे. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर दुख जाहिर करते हुए कहा कि एक पीढ़ी चली गई, दूसरी पीढ़ी आंशिक रूप से चली गई, फिर भी आवास दिए जाने का कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा. वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता के वकीलों यशदीप देशमुख और आकाश जैसवार ने कहा कि बार-बार पूछताछ और अभ्यावेदन के बावजूद भटूसे को उनकी पात्रता के अनुसार आवास आवंटित नहीं किया गया. याचिकाकर्ता के वकीलों का कहना है कि भटूसे ने परेल गांव के दोस्ती बेलेजा में 579 वर्ग फुट के फ्लैट की पहचान की थी, इसे विकासक के अधिशेष क्षेत्र के रूप में म्हाडा को सौंप दिया गया था. भटूसे कानूनन अतिरिक्त 300 वर्ग फुट क्षेत्र के लिए भुगतान करने को भी तैयार थे. म्हाडा की ओर से पेश एडवोकेट पीजी लाड ने कहा कि इस तरह की मांग और भी कोई करना शुरू कर देगा जिस पर न्यायाधीशों ने कहा की इस आशंका का कोई आधार नहीं है, क्योंकि भटूसे अतिरिक्त क्षेत्र को मुफ्त में नहीं मांग रहे हैं और म्हाडा के निर्धारित दर पर भुगतान करने के लिए याचिकाकर्ता सहमत है. यही नहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि हम खुद को और म्हाडा, दोनों को याद दिला दें कि नैतिक ब्रह्मांड का चाप लंबा है, लेकिन यह हमेशा न्याय की ओर झुकता है. हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह भी माना कि निर्माण की भारी छूट याचिकाकर्ता पर लागू की जाती है तो इसे लगभग सभी पर लागू करना होगा और कई लोग दावा करने लगेंगे. फिलहाल बॉम्बे हाई कोर्ट ने भटूसे को अतिरिक्त क्षेत्र का म्हाडा को भुगतान करने के लिए एक महीने का समय दिया है और भुगतान के बाद 24 घंटे के भीतर याचिकाकर्ता भटूसे को उक्त अपार्टमेंट में फ्लैट का कब्जा देने का आदेश म्हाडा को दिया.