एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

 06 Nov 2020  863
ब्यूरो रिपोर्ट/in24न्यूज़/नई दिल्ली
 
देश की सबसे बड़ी अदालत ने गुरूवार को अपने फैसले में कहा कि उच्च जाति के किसी भी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि उस पर एससी एसटी के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध इसलिए नहीं स्वीकार किया जाएगा कि शिकायत कर्ता एससी/एसटी जाति से है, बशर्ते जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि आरोपी ने सोच-समझकर शिकायत कर्ता का उत्पीड़न उसकी जाति के कारण किया हो. अब एससी/एसटी समुदाय के उत्पीड़न और उच्च जाति के लोगों के अधिकारों के संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी अहम मानी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ की तरफ से लिखे गए फैसले में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि, उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को गाली भी दे दी हो तो उस पर एससी एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। लेकिन हां यदि उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को जानबूझकर प्रताड़ित करने के लिए या उसे अपमानित करने के लिए गाली दी हो तो उस पर एससी एसटी/एक्ट के तहत कार्रवाई शुरू की जाएगी.
       सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ़ कहा कि जब तक उत्पीड़न का कोई कार्य किसी जाति के कारण सोच विचार कर नहीं किया गया हो तब तक आरोपी पर एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती. सर्वोच्च न्यायपालिका ने कहा कि उच्च जाति का कोई व्यक्ति अगर अपने अधिकारों की रक्षा में कोई कदम उठाता है तो उसका मतलब यह नहीं कि उसके ऊपर स्वत: एससी/एसटी एक्ट के तहत आपराधिक मुकदमें की तलवार लटक जाए. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसलों पर फिर से मुहर लगाते हुए कहा कि एससी/एसटी एक्ट के तहत उसे आपराधिक कृत्य ठहराया जा सकता है जिसे सार्वजनिक तौर पर अंजाम दिया जाए ना कि घर या चहारदीवारी के अंदर. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह टिप्पणी एक पुरुष को और एक महिला को जाति संबंधी गाली देने के लिए आपराधिक आरोप से मुक्त करते हुए दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी पुरुष और शिकायत कर्ता महिला के बीच उत्तराखंड में जमीन का विवाद चल रहा था, दोनों ने इस संबंध में एक दूसरे पर मुकदमा किया था. बाद में महिला ने यह कहते हुए एससी/एसटी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया कि कथित पुरुष ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर महिला को खेती करने से जबरन रोक दिया और उन्होंने महिला को जाति संबंधी गालियां भी दी. इस मामले में तथ्यों की पड़ताल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुरुष पर घर की चहारदिवारी के अंदर गाली-गलौज करने का आरोप है नाकि सार्वजनिक तौर पर. इसलिए उसके खिलाफ इस एक्ट के तहत कार्रवाई करना न्याय संगत नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि जब तक कोई व्यक्ति एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को उसे जाति के आधार पर प्रताड़ित करने की मंशा से भला बुरा नहीं कहता और जब तक उत्पीड़न की घटना का कोई गवाह ना हो तब तक किसी उच्च जाति के व्यक्ति के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्यवाही नहीं की जा सकती.