मुंबई को मायानगरी कहा जाता है, इस शहर के चकाचौंध की पहचान ही बॉलीवुड से है, लेकिन यहां एक बड़ा विरोधाभास भी है. मुंबई में अत्यंत गरीबी से जूझने वाला एक ऐसा तबका भी है, जिसके लिए सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखना किसी सपने से कम नहीं. जी हां हम बात कर रहे हैं आदिवासी समाज की, जो मुंबई से सटे मीरा भाईंदर शहर में रहते हैं. इस वर्ग के पुरुष यदा कदा भले ही सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देख लें लेकिन महिलाओं के लिए सिनेमाघरों में फिल्म देखना एक सपने जैसा है. लेकिन इन महिलाओं के सपने को पूरा किया है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने. विश्व महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के सम्मान में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तरफ से शहर की करीब 300 गरीब आदिवासी महिलाओं को निशुल्क फिल्म दिखाया गया. आदिवासी महिलाओं ने भाइंदर स्थित ठाकुर मॉल में पहुँच कर मराठी फिल्म 'पावनखिंड' देखा. फिल्म देखने पहुंची कई महिलाएं इस मौके पर भावुक हो उठीं. उन्होंने कहा कि सिनेमा हॉल में फिल्म देखना उनके लिए एक सपने की तरह है, क्योंकि इससे पहले उन्होंने कभी भी सिनेमाघर में कदम नहीं रखा था. तो वहीं मनसे के स्थानीय नेता संदीप राणे ने कहा कि आदिवासी समाज यहां का मूल निवासी हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां केवल इनके लिए वादों और आश्वासनों का पिटारा लेकर आती है लेकिन उसमे होता है शून्य बटा सन्नाटा. यानि आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कभी किस राजनीतिक दल ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने संकल्प लिया है कि वे आदिवासी समाज के साथ साथ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों का न सिर्फ उत्थान करेंगे बल्कि उनके विकास के लिए हर संभव प्रयासरत रहेंगे. फिलहाल मनसे की तरफ से इस समाज के विकास के लिए लगातार प्रयास जारी है.