दंगा मामले में योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
26 Aug 2022
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संवाददाता/in24 न्यूज़.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ( Yogi Adityanath) पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। बता दें कि मामला साल 2007 का है। दरअसल, याचिका में आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के बाद 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ था। इससे पहले राज्य सरकार ने साल 2017 में इस आधार पर मुकदमे की अनुमति देने से मना कर दिया था कि सबूत नाकाफी हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी फरवरी 2018 में मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। आज मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस याचिका में मेरिट नहीं है। इस वजह से इस केस को चलाने की मंजूरी नहीं दी जा सकती है। बता दें कि याचिकाकर्ता ने साल 2007 में सीएम योगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने की अपील की थी, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में सीजेएम को नए सिरे से फैसला करने का निर्देश दिया था। उसके बाद तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य नेताओं के खिलाफ धारा 153, 153ए, 153बी, 295, 295बी, 147, 143, 395, 436, 435, 302, 427, 452 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया। वहीं, यूपी सरकार की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में कुछ बचा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सीएफएसएल के पास सीडी भेजी गई थी और पाया गया कि उसके साथ छेड़छाड़ हुआ था। साथ ही याचिकाकर्ता ने जो मुद्दा उठाया है हाईकोर्ट ने उस पर ध्यान दिया है। याचिकाकर्ता परवेज परवाज का कहना था कि तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के बाद 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ था। इसमें कई लोगों की जान चली गई थी। साल 2008 में दर्ज हुई एफआईआर के बाद राज्य सीआईडी ने इस मामले में कई साल तक जांच की। इसके बाद साल 2015 में राज्य सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गई। याचिका में कहा गया है कि मई 2017 में राज्य सरकार ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। जब राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार किया, तब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। ऐसे में अधिकारियों की तरफ से लिया गया यह फैसला दबाव में लिया गया हो सकता है। बहरहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह फैसला बड़ी राहत है।