ठाकरे परिवार से सावरकर फैमिली के बेहद करीबी रिश्ते

 19 Nov 2022  506
ब्यूरो रिपोर्ट/in24न्यूज़/मुंबई
 
 

   महाराष्ट्र की सियासत में इस समय वीर सावरकर (Veer Savarkar) को लेकर बवाल मचा हुआ है. इतिहासकार सावरकर को प्रखर हिंदुत्ववादी नेता मानते हैं. यहां तक कि वीर सावरकर के बाद बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) ने हिंदुत्व की लगाम अपने हाथ में लेकर शिवसेना (Shivsena) पार्टी की बुनियाद रखी. बालासाहेब ठाकरे वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते थे, यह भी जानना दिलचस्प है. सबसे पहले आपको बता दें कि राहुल गांधी ने सावरकर को लेकर ऐसा बयान दिया कि पूरे देश में कोहराम मच गया. महाराष्ट्र में खासकर उद्धव बालासाहेब ठाकरे वाली शिवसेना के पक्ष प्रमुख ने ना सिर्फ राहुल गांधी का खुलकर विरोध किया, बल्कि उन्होंने दो टूक में कह दिया कि वह राहुल गांधी के बयान से सहमत नहीं है. राजनीतिक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि राहुल गांधी का यह बयान महाविकास आघाड़ी में फूट का कारण बन सकता है.

 
         बता दें कि साल 1921 में अंडमान जेल से रिहा होने के बाद वीर सावरकर से कई लोग मिले थे. इन्हीं में से एक थे प्रबोधनकार ठाकरे (Prabodhankar Thackeray), जो बालासाहेब ठाकरे के पिता थे. और वह समाज सुधारक के तौर पर जाने जाते थे. उन दिनों प्रबोधनकार ठाकरे अक्सर वीर सावरकर से सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक विषयों पर चर्चा करते थे. प्रबोधनकार ठाकरे की उसी विचारधारा में बालासाहेब ठाकरे को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया. चार दशक के बाद बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना पार्टी की स्थापना की और हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आखिर तक वह लड़ते रहे. इसलिए उन्हें हिंदू ह्रदय सम्राट की भी उपाधि लोगों ने दी. बालासाहेब ठाकरे ने कई मौकों पर वीर सावरकर के विचारों का समर्थन भी किया था. आज से तकरीबन 10 साल पहले जब कांग्रेस पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Sinigh) ने वीर सावरकर पर निशाना साधते हुए कहा था कि सावरकर ने ही सबसे पहले दो राष्ट्रों के सिद्धांत को उठाया था, जिसकी वजह से आगे चलकर देश का विभाजन हुआ था. इस मुद्दे पर बालासाहेब ठाकरे ने उसी दौरान वीर सावरकर का खुलकर बचाव किया था. बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिए लिखा था कि इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करके दिग्विजय सिंह मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. सावरकर अंत तक अखंड भारत के समर्थक रहे, और वह पाकिस्तान के निर्माण के खिलाफ थे. बालासाहेब ठाकरे ने यह भी कहा था कि 1945 के चुनाव के दौरान महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) पूरी तरह से आश्वस्त थे कि देश का विभाजन नहीं होगा. सावरकर को गांधीजी के विश्वास पर भरोसा नहीं था और उन्होंने बार-बार कहा कि कांग्रेस विभाजन को स्वीकार करेगी और कांग्रेस को मतदान करने का मतलब विभाजन को समर्थन देना है. बालासाहेब ठाकरे ने कहा कि सावरकर की बात पर किसी ने भरोसा नहीं किया और तब आरएसएस (RSS) और हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) के नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr Shyama Prasad Mukharjee) और कुछ अन्य लोगों ने साल 1945 के चुनाव से खुद को अलग कर लिया. बाद में आर एस एस प्रमुख ने अपनी गलती को स्वीकार भी किया था. ज्ञात हो कि ठाकरे परिवार का सावरकर फैमिली के साथ एक पारिवारिक रिश्ता है, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी के बयान पर अपनी असहमति जताई. ठाकरे ने कहा कि हमारे दिल में वीर सावरकर के प्रति काफी आदर और सम्मान है, जो कभी खत्म नहीं हो सकता. साल 2003 में जब वीर सावरकर के पुतले का लोकसभा में पहली बार अनावरण किया गया, तब शिवसेना के सांसदों ने इसका जश्न मनाया था. हालांकि अब उद्धव ठाकरे के गुट के लोग एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) के साथ हैं, बावजूद इसके उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा को छोड़ना नहीं चाहते. कई अखबार पत्र में प्रकाशित किए गए लेख पर यदि गौर करें तो, दिसंबर 2021 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार (Sharad Pavar) भी वीर सावरकर की तारीफ कर चुके हैं. शरद पवार ने उस दौरान कहा था कि सावरकर सिर्फ एक हिंदुत्ववादी नेता ही नहीं थे, बल्कि हिंदुत्व के प्रति उनकी एक आधुनिक सोच भी थी. उन्होंने अपने समय में मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर भी आवाज बुलंद की थी और उसमें सुधार लाने का प्रयास भी किया था. यह वही सावरकर थे, जिन्होंने इस बात को भी मुक्त रूप से कहा था कि गाय का मांस और दूध मनुष्य को खाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि गाय एक दूध देने वाला जानवर है ना की मां. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी (Rahul gandhi) अभी भी अपने बयान पर अड़े हुए हैं. ऐसे में वीर सावरकर को लेकर मचा राजनीतिक भूचाल कब तक थमेगा यह कहना फिलहाल मुश्किल सा है.