संवाददाता/in24 न्यूज़।
अपने ऊपर लगे राजनीतिक आरोपों पर महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अब खुलकर बात करनी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल विवादों में रहा है। माना तो यह भी जा रहा है कि इन्हीं विवादों के चलते उन्हें हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद वह अपने गृह राज्य उत्तराखंड लौट गए हैं। ऐसे कई मुद्दों पर पूर्व राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता ने पार्टी के स्तर पर मिले सम्मान और पद को लेकर बड़ा बयान दिया है।
कोश्यारी ने कहा कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने का सम्मान मिला और मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहा। इतना किसी को कहा मिलता है और मैं तो राजनीति में था ही नहीं, लेकिन जब दिल्ली दूर पेइचिंग पास के नारे लगने लगे तो संघ ने मेरी पढ़ाई-लिखाई और जागरूकता को देखते हुए बीजेपी में जाकर काम संभालने को कहा। मुझसे कहा गया कि चीन के साथ लगती सीमा वाले प्रदेश के लिए ऐसे नारे ठीक नहीं। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने उत्तराखंड को अलग राज्य बनाकर यहां के लोगों की इच्छा का सम्मान किया, जो मेरे लिए आनंद का विषय था। मैं तो स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं।
राज्यपाल को राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से काम करना होता है। जब कोई मुश्किल घड़ी आती है तो उसमें हमें संविधान के मुताबिक काम करना होता है। राज्यपाल को इन हालात में अपने विवेक का भी इस्तेमाल करना होता है। एक बात यह भी है कि संबंध सिर्फ राजनीतिक नहीं, पारिवारिक भी होते हैं। पारिवारिक दृष्टि से हमारे संबंध खराब नहीं हुए हैं। राजनीतिक दृष्टि से जो घटनाक्रम सामने आते हैं, उस हिसाब से रिश्तों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है।मैं जिस पद पर भी रहा, वहां मैंने जो भी काम किए, वह जनता को जनार्दन मानते हुए उनके हित में किए।
महाराष्ट्र में मैं लगभग 1200 दिनों तक राज्यपाल रहा। मैंने इनमें से 1100 से अधिक सार्वजनिक कार्यक्रम किए। 36 जिलों का भ्रमण कर समस्याओं को समझा और उन्हें हल करने की कोशिश की। ट्राइबल एरिया में जाकर मैं गांव में सोता था। मैं जानता था कि राज्यपाल का पद सेवा का पद है, यह सिर्फ शोभा का पद बनकर न रह जाए। जहां तक छत्रपति शिवाजी महाराज और सावित्री बाई फुले जी का सवाल है तो, मैं उनका अपमान करने की सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं। हम उनके त्याग, बलिदान और इतिहास को जितना जानते हैं, उतना कम ही लोग जानते होंगे। उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा न होती तो क्या मैं पैदल चलकर इस उम्र मैं उनके जन्म स्थान पर जाता! लोग वहां हेलिकॉप्टर और दूसरे साधनों से जाते हैं, मैं उनके प्रति श्रद्धा रखने के कारण पैदल चलकर गया था।