अफगानिस्तान और भारत के संबंधों में आई नई खटास
25 Aug 2021
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अस्मिता ठक्कर/in24 न्यूज़
अफगानिस्तान और भारत के संबंधों में अब तालिबान के कब्ज़े के बाद काफी बदलाव आएगा। अमेरिका के समर्थन वाली सरकार सत्ता से बेदखल हो चुकी है। भारत का भी अफगानिस्तान में बहुत कुछ दांव पर लगा है। भारत ने पड़ोसी देश में अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है। अब तक भारत-अफ़ग़ानिस्तान के संबंध बेहद अच्छे रहे हैं। हालांकि, बंदूक के जोर पर सत्ता में आई तालिबान की नई अफगान सरकार के साथ उसके ताल्लुकात कैसे रहते हैं, यह पूरी तरह वहां के नेतृत्व पर निर्भर करेगा। पाकिस्तान और चीन से भारत के रिश्तों में पहले से खटास है और अगर अफ़ग़ानिस्तान भी उनका समर्थन करेगा तो निश्चित ही यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। अभीतक बहुत आशंकाएं और सवाल हैं। बात करें अफ़ग़ानिस्तान में फंसे भारतीयों की तो भारत सरकार काबुल से भारतीय लोगों और अन्य देशों के नागरिकों को निकाल रही है। अभी तक काबुल से 800 से ज्यादा लोगों को खदेड़ा जा चुका है। इसमें दूसरे देश के नागरिक भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान में अभी भी करीब 200 अफगान सिख और हिंदू फंसे हुए हैं। भारतीय नागरिकों का सही सलामत लौटना दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों का संकेत है। यदि बात की जाए कश्मीर मुद्दे की तो पाकिस्तान और चीन तालिबान को मदद देते रहे हैं। दोनों ही देश तालिबान के लगातार संपर्क में भी हैं। इस तरह तालिबान के साथ पाकिस्तान और चीन दोनों हैं। वहीं, भारत का रुख इस मामले में थोड़ा उलट रहा है। हाल में मोदी सरकार ने ऐलान किया था कि वह अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगी। यही रुख अमेरिका और कई यूरोपीय देशों का भी है। वैसे तालिबान कहता रहा है कि पहले की तरह वह भारत के साथ संबंध बनाए रखने का इच्छुक है। पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंध काफी खट्टे रहे हैं। इन दोनों के साथ हमारे एक पड़ोसी मुल्क का खड़ा हो जाना निश्चित ही भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। भारत कभी नहीं चाहेगा कि वह क्षेत्र में अपने एक सहयोगी को गंवा दे। भारत सहित कई देश तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर इतनी जल्दी काबिज होने से चकित हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जिस तरह तालिबान ने बंदूक के बल पर सत्ता हासिल की है, इस बात की आशंका है कि अफगानिस्तान कहीं आतंकियों की पनाहगाह न बन जाए। तालिबान के अलकायदा के सदस्यों को शरण देने के कारण दो दशक पहले अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान और अलकायदा का गठबंधन बना हुआ है। दूसरे हिंसक समूहों को भी नए शासन के तहत सुरक्षित पनाहगाह मिल सकती है। कुछ जानकारों का अब मानना है कि अलकायदा जैसे आतंकी समूह उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से अपने पांव पसार सकते हैं। अगर ऐसा होगा तो भारत को अपना रुख बिल्कुल स्पष्ट करना होगा। वह ऐसे किसी देश के साथ खुद को नहीं खड़ा कर सकता है जो दुनियाभर में आतंकियों की सप्लाई करने वाला हो। अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद सिर्फ अंतरराष्ट्रीय संबंध और सुरक्षा नहीं बल्कि भारतीय व्यापार और निवेश का भी काफी नुकसान होने का अनुमान है। अब तक भारत और अफगानिस्तान के संबंध बेहद अच्छे रहे हैं। यही कारण है कि भारत ने दिल खोलकर वहां निवेश किया था। कई सड़क, पुल, इमारतों सहित देश की बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारत ने अरबों डॉलर लगाए हैं। लेकिन अब तालिबान के कब्ज़े के बाद दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापर रुक गया है जिस कारण अफ़ग़ानिस्तान से आने वाली चीज़ें खासकर ड्राई फ्रूट्स और मसाले जैसे अंजीर, पिस्ता, हरी और काली किशमिश, हींग और बिरयानी में इस्तमाल किए जाने वाला विशेष प्रकार का जीरा की भारत में कमी हो गई है। अधिक मांग और कम आपूर्ति के कारण यह सारी चीजों के दाम बढ़ते जा रहे है। संक्षेप में कहें तो अफगानिस्तान पर तालिबान के आक्रमण ने, भारत की राजनीति, सुरक्षा और अर्थशास्त्र को प्रभावित किया है। मगर यह भी सही है कि आज की तारीख़ में भारत का वजूद विश्व के पटल पर और भी मजबूत और समृद्ध हुआ है।