अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्लादिमीर पुतिन की नई चाल से विरोधियों में हड़कंप
29 Jun 2023
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ब्यूरो रिपोर्ट/in24न्यूज़
देश-विदेश में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जानने वाले बेहद आश्चर्यचकित हैं. पुतिन के विश्वासपात्र एवं कभी सज़ायाफ्ता रहे येवेगेनी ने साल 2014 में उन्हीं के सहयोग से निजी सेना ‘वैगनर आर्मी’ गठित की थी. पुतिन के संरक्षण में पली, बढ़ी इस आर्मी ने क़रीब 9 सालों में येवगेनी की छवि दुनिया में सबसे ‘बर्बर योद्धा’ की बना दी. प्रिगोनिनी की सेनाओं ने 24 जून को जब ‘रूस में बगावत का बिगुल’ फूंकते हुए रूसी शहर रोस्तोव पर कब्जा कर लिया, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तरह तरह की अटकलें लगाई जाने लगी. दरअसल, पुतिन शुरू से ही विश्व में सबसे तेज कूटनीतिक दिमाग वाले नेता माने जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों में कमोबेश सब ने एक-चौथाई शतक से यह अनुभव किया है. विशेषज्ञ सूत्रों का कहना है कि पुतिन को कुछ महीनों से यह आशंका थी कि रूस में ही सियासत और सेना के कतिपय लोग उनसे संतुष्ट नहीं हैं. बावजूद इसके कि उनकी कार्रवाइयों से ‘रूसी लोगों में राष्ट्रवाद’ की भावना हाल के वर्षो में प्रबल हुई है. अघोषित रूप से रूस में उनके ‘बेमिसाल बादशाह’ बने रहने की यही मुख्य वजह है. पुतिन देश के एक छोर सेंट पीटर्सबर्ग से हैं, जबकि देश में क्रमश: दूसरे, तीसरे ताकतवर माने जाने वाले रक्षामंत्री सरगेई सोइगू तथा सेनाध्यक्ष जनरल गेरासिमोव मास्को से हैं. इससे रूसी सैन्य प्रशासन दो खेमों में बंट गए. यूक्रेन से करीब 16 महीने से ज़ारी युद्ध ने इस बात की तरफ अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है. बेशक, पुतिन रूस के सर्वेसर्वा हैं. लिहाजा आरोप उन पर लगने लगा कि वे युद्ध नीति का संचालन सही से नहीं कर पा रहे. हालांकि हकीक़त इसके ठीक उलट है. पुतिन अनेक विश्व नेताओं के मुक़ाबले अभी काफी युवा (मात्र 71 वर्ष के) हैं. इससे पर्याप्त चुस्त-दुरुस्त नज़र आते हैं. उन्होंने ‘नाटो’ से गठबंधन को लालायित यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की भारी मान-मनौती की. फिर भी उनके अड़े रहने पर पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला बोल दिया था. अनुमान था कि जेलेंस्की 10-15 दिनों में मान जाएंगे लेकिन 15 महीने बीत गये. इसमें बज़रिये यूरोप अमेरिका भी पीछे से जेलेंस्की की सहायता में है. नतीजतन युद्ध खिंचता गया और अब पश्चिमी मीडिया तथा राजनीतिज्ञों द्वारा इसका ठीकरा पुतिन पर फोड़ा जाने लगा है. कहा जा रहा कि पुतिन की इसी युद्ध नीति से ना.खुश सोइगू (रक्षामंत्री) तथा रूसी सेना के प्रमुख जनरल गेरासिमोव कुछ और मन बनाने लगे थे. जाहिर है कि इससे पुतिन भी बेचैन होंगे ! यही कारण है कि वैगनर आर्मी के कमांडर येवगेनी को इस बात के लिए उकसाया गया कि वह रूस के खिलाफ ही विद्रोह का ऐलान कर दें. जिन्होंने यूक्रेन में तो पुतिन की शय पर ही भारी तबाही मचाई, अफ्रीकन देशों और सीरिया में विद्रोह उकसाने में भी कुशलता का परिचय दिया. येवगेनी की सेना ने प्रोजेक्ट के तहत फ़ौरन ऐसा किया और उसके बख्तर बंद सैनिकों ने मास्को से महज 1,100 किमी दूर रूसी शहर रोस्तोव पर कब्जा कर राष्ट्रीय राजधानी से 380 किलोमीटर दूर तक आ गए. तभी बेलारूस के राष्ट्रपति जनरल लुकांशे की मध्यस्थता से अचानक बगावत थमने की .खबर चमकने लगी. बहरहाल, मीडिया यही अलाप रहा है कि रूस पर अब तक का सबसे बड़ा खतरा टल गया. येवगेनी ने अपने टैंकों को अपने कब्जे के रोस्तोव शहर, मास्को से 600 किलोमीटर दूर कब्जे वाले दूसरे शहर लिपेत्स्क से लौटने और रूसी राजधानी की तरफ़ आगे बढ़ने से मना करते हुए बैरकों में वापस पहुंचने का आदेश दिया. इस पर अमल अब मुकम्मल हो चुका है. दूसरी ओर बगावत के बाद बने हालात की रोशनी में इलाके के गवर्नर ने मास्को में सभी कार्यक्रम पहली जुलाई तक स्थगित करने के आदेश दिए हैं. सड़कों पर आवाजाही प्रतिबंधित करने का ‘अलर्ट’ है. स्कूलों और कॉलेजों में सभी गतिविधियां 30 जून तक स्थगित रहेंगी. इसे यूक्रेन को लेकर राष्ट्रपति पुतिन के कुछ बहुत ठोस निर्णय करने का संकेत माना जा रहा है.
फौज तथा उसके लगभग सारे प्रमुख कमांडर उन्हीं के साथ हैं. मास्को स्थित भारतीय पत्रकार रामेर सिंह का कहना है कि रूस में शुक्रवार से 24-36 घंटों के भीतर जो कुछ हुआ है, उससे पुतिन की छवि और निखरी है. उनके प्रति रूसियों का भरोसा और बढ़ा है. वे येवगेनी से मास्को के ‘कथित समझौते’ को अपने राष्ट्रपति की विजय के रूप में देख रहे हैं लेकिन पूरी असलियत का खुलासा तो शायद भविष्य में कभी हो. समझा जाता है कि पुतिन अपने रक्षा मंत्री, सेनाध्यक्ष तथा उनके कुछ अन्य सहयोगियों के विरुद्ध कार्रवाई का मौका पा गये हैं. साथ ही उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति, उनके साथ खड़े यूरोप और उनके समर्थकों को तो साफ संदेश दे ही दिया है. विशेषज्ञ यही मान रहे हैं कि पुतिन ‘गेम प्लान’ से उनके सभी विरोधी पस्त होते जा रहे हैं. कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रूसी राष्ट्रपति की नई चाल हर किसी को यह सोचने पर मजबूर कर दे रही है कि भविष्य में उनका अगला राजनीतिक और कूटनीतिक कदम क्या होगा?