भारत ने किया पीओके में आतंकी कैंपों पर हमला और पांच आतंकी को उड़ाया

 20 Oct 2019  897
संवाददाता/in24 न्यूज़.
भारत के दुश्मन भले ही लाख कोशिश कर लें, वे उसका बाल भी बांका नहीं कर सकते, क्योंकि सेना के जवानों में इतनी शक्ति है कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने में एक पल भी नहीं गंवाते। गौरतलब है कि पाकिस्तान की तरफ से लगातार हो रही है घुसपैठ की कोशिशों के बीच भारतीय सेना ने बड़ी कार्रवाई की है. इस कार्रवाई के तहत सेना ने पीओके में स्थित आतंकी कैंपों पर हमला बोल दिया है. दरअसल पिछले काफी समय से पाकिस्तानी आर्मी आतंकियों की भारत में घुसपैठ की कोशिशों में मदद कर रही थी. इन्हीं सब गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना ने बड़ी कार्रवाई की और पीओके में स्थित आतंकी कैंपो को तबाह कर दिया. ताजा जानकारी के मुताबिक इस हमले में 4-5 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई है. इसके अलावा नीलम घाटी में 4 आतंकी लॉन्च पैड्स को तबाह कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि भारतीय सेना ने आतंकी कैंपों को निशाना बनाने के लिए आर्टिलरी गन का इस्तेमाल किया है. बता दें, भारतीय सेना की तरफ से ये कदम ऐसे समय में उठाया गया जब रविवार को ही तंगधार में पाकिस्तान आर्मी ने सीजफायर का उल्लंघन किया था. इस दौरान हुई भारी गोलीबारी में 2 जवान शहीद हो गए और एक आम नागरिक भी मारा गया. इसके अलावा इस घटना में कई आम नागरिकों के घायल होने की भी खबर थी. इस दौरान स्थानीय लोगों की संपत्ति को भी काफी नुकसान पहुंचा था. बताया जा रहा था कि पाकिस्तानी आर्मी आतंकवादियों की भारत में घुसने में मदद कर रही थी और इसी के चलते सीजफायर का उल्लंघन किया गया. पाकिस्तानी की इसी तरह की नापाक हरकतों को देखते हुए भारतीय सेना ने रविवार को आतंकी कैंपों पर हमला बोल दिया.  

 

एक लड़के के माता-पिता ने उसकी गर्लफ्रेंड को कॉल गर्ल कह दिया तो लड़की ने आत्महत्या कर ली. लड़के और उसके माता-पिता पर लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में केस दर्ज हो गया. 15 साल बाद जब सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया तो परिवार को राहत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'कॉल गर्ल' कहने मात्र से आरोपियों को आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराकर दंडित नहीं किया जा सकता है. जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी ने अपने फैसले में कहा कि आत्महत्या का कारण  अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल था, यह नहीं माना जा सकता है. जजों ने कहा कि गुस्से में कहे गए एक शब्द को, जिसके परिणाम के बारे में कुछ सोचा-समझा नहीं गया हो, उकसावा नहीं माना जा सकता है. सर्वोच्च अदालत ने इसी तरह के एक पुराने फैसले में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से मुक्त कर दिया था. उसने झगड़े के वक्त पत्नी से  जाकर मर जाने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने ताजा मामले में इसी पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा, इसी फैसले के मुताबिक हमारा विचार है कि इस तरह का आरोप आईपीसी की धारा 306/34 के तहत दोष मढ़कर कार्यवाही की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है. इस आरोप से यह भी स्पष्ट है कि आरोपियों में से किसी ने भी पीड़िता को आत्मह