तबलीगी जमात के ख़िलाफ़ तसलीमा नसरीन ने कसी क़मर

 12 Apr 2020  796

संवाददाता/in24 न्यूज़.
आज जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस की गिरफ़्त में है, वहीं भारत में तबलीगी जमात को लेकर चर्चा छिड़ गई है. अब इसी कड़ी लेखिका तसलीमा नसरीन ने तबलीगी जमात के ख़िलाफ़ कमर कस ली है. इसी संदर्भ में उनका ताज़ा बयान आया है. भारत में कोरोना संकट को लेकर विवादों में आए तबलीगी जमात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका और कभी पेशे से डॉक्टर रहीं तसलीमा नसरीन ने कहा है कि ये जहालत फैलाकर मुस्लिम समाज को 1400 साल पीछे ले जाना चाहते हैं।  यह जमात मुसलमानों को 1400 साल पुराने अरब दौर में ले जाना चाहती है। उनकी पहचान विवादों से घिरी रहने वाली लेखिका के रूप में है लेकिन तसलीमा एक डॉक्टर भी हैं। उन्होंने बांग्लादेश के मैमनसिंह में मेडिकल कॉलेज से 1984 में एमबीबीएस की डिग्री ली थी। उन्होंने ढाका मेडिकल कॉलेज में काम शुरू किया, लेकिन नारीवादी लेखन के कारण पेशा छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि हम मुस्लिम समाज को शिक्षित, प्रगतिशील और अंधविश्वासों से बाहर निकालने की बात करते हैं. लेकिन लाखों की तादाद में मौजूद ये लोग अंधकार और अज्ञानता फैला रहे हैं। मौजूदा समय में साबित हो गया कि ये अपनी ही नहीं दूसरों की जिंदगी भी खतरे में डाल रहे हैं। जब इंसानियत एक वायरस के कारण खतरे में पड़ गई है तो हमें बहुत एहतियात बरतने की जरूरत है। अपने कट्टरपंथ विरोधी लेखन के कारण फतवे और निर्वासन झेलनेवाली इस लेखिका ने कहा कि मुझे समझ में नहीं आता कि इन्हें मलेशिया में संक्रमण की खबरें आने के बाद भारत में आने ही क्यों दिया गया! ये इस्लाम की कोई सेवा नहीं कर रहे हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस महामारी से जूझते डॉक्टरों को देखकर उन्हें 90 की दशक की शुरुआत का वह दौर याद आ गया जब बांग्लादेश में हैजे के प्रकोप के बीच वह भी इसी तरह दिन रात की परवाह किए बिना इलाज में लगी हुई थीं।उन्होंने कहा कि इससे मुझे वह समय याद आ गया जब 1991 में बांग्लादेश में हैजा बुरी तरह फैला था। मैं मैमनसिंह में संक्रामक रोग अस्पताल में कार्यरत थी जहां रोजाना हैजे के सैकड़ों मरीज आते थे और मैं भी इलाज करने वाले डॉक्टरों में से थी। मैं उस समय बिल्कुल नई डॉक्टर थी। बांग्लादेश में 1991 में फैले हैजे में करीब225000 लोग संक्रमित हुए और 8000 से अधिक मारे गए थे। तसलीमा ने आगे कहा कि मुझे दुनिया भर के डॉक्टरों को देखकर गर्व हो रहा है कि मैं इस पेशे से हूं। वे मानवता को बचाने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डालने से पीछे नहीं हट रहे। मैं ढाका मेडिकल कॉलेज में थी जब 1993 में मुझे चिकित्सा पेशा छोड़ना पड़ा। बांग्लादेश सरकार ने मेरा पासपोर्ट जब्त कर लिया जब मैं कलकत्ता में एक साहित्य पुरस्कार लेने जा रही थी। मुझसे कहा गया कि कुछ भी प्रकाशित करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। मैंने विरोध में सरकारी नौकरी छोड़ दी। यह पूछने पर कि क्या मौजूदा हालात में उन्हें फिर सफेद कोट पहनने की इच्छा होती है, उन्होंने कहा कि अब बहुत देर हो गई है और अब सब कुछ बदल चुका है। शुरू-शुरू में यूरोप ने बतौर बागी लेखिका ही मेरा स्वागत किया और मैंने फिर चिकित्सा पेशे में जाने की बजाय लेखन में ही पूरा ध्यान लगा दिया। तसलीमा की दो बहुचर्चित किताबें ‘माय गर्लहुड’ और ‘लज्जा’ का अगला भाग ‘शेमलेस’ इसी महीने रिलीज होनी थी लेकिन लॉकडाउन के चलते अब उनका किंडल स्वरूप में आना ही संभव लग रहा है। उन्होंने कहा कि मेरी एक किताब तो बुक स्टोर में पहुंच चुकी थी कि अगले दिन लॉकडाउन हो गया। दूसरी 14 अप्रैल को रिलीज होनी थी लेकिन अब संभव नहीं लगता। शायद किंडल रूप में सामने आए। वैसे भी इससे कहीं ज्यादा जरूरी लॉकडाउन था।