नेपाल में नवंबर में होंगे मध्यावधि चुनाव
22 May 2021
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संवाददाता/in24 न्यूज़.
भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया है और 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनावों की घोषणा की है. राष्ट्रपति ने यह निर्धारित किया कि दोनों प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थे. भंडारी की घोषणा प्रधानमंत्री ओली द्वारा 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश के बाद की गई. पिछले साल 20 दिसंबर को राष्ट्रपति भंडारी ने संसद भंग कर दी थी लेकिन बाद में फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बहाल कर दिया था. राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी एक प्रेस बयान में कहा गया है कि संसद को भंग कर दिया गया था और मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (7) के अनुसार की गई है. मंत्रिपरिषद ने पहले चरण का मतदान 12 नवंबर और दूसरे चरण का मतदान 19 नवंबर को कराने की सिफारिश की है. यह कदम राष्ट्रपति कार्यालय के एक नोटिस के बाद उठाया गया जिसमें कहा गया था कि के.पी. शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष, दोनों द्वारा नई सरकार बनाने के लिए किए गए दावे अपर्याप्त थे. नेपाल में एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को नई सरकार बनाने के लिए संसद में कम से कम 136 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है. दिलचस्प बात यह है कि ओली और देउबा दोनों ने कुछ सांसदों के समर्थन का दावा किया था, जिनके नाम नेपाली मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ उन दोनों की सूची में शामिल थे. यह दूसरी बार है जब राष्ट्रपति भंडारी ने राजनीतिक संकट के बाद प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद भंग की है. नेपाल के राजनीतिक संकट ने शुक्रवार को नाटकीय मोड़ ले लिया था क्योंकि प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को सांसदों के समर्थन पत्र सौंपकर नई सरकार के गठन के लिए अलग-अलग दावे किए थे. प्रधानमंत्री ओली राष्ट्रपति कार्यालय शीतल निवास पहुंचे थे और विपक्षी नेताओं के सामने अपनी सूची पेश की थी. संविधान के अनुच्छेद 76(5) के अनुसार एक नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश करने के एक दिन बाद ओली ने पहली बार घोषणा की कि उन्हें प्रतिनिधि सभा के 153 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. यह हवाला देते हुए कि उनके पास एक और फ्लोर टेस्ट से गुजरने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं है. जाहिर है राष्ट्रपति के फैसले के बाद अब नेताओं का पूरा ध्यान नवंबर में होने वाले चुनाव पर लग जाएगा.