नाबालिग पत्नी से संबंध बनाना रेप-सुप्रीम कोर्ट
11 Oct 2017
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ब्यूरो रिपोर्ट / in24 न्यूज़
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश की थी कि बाल विवाह सामाजिक सच्चाई है और इस पर कानून बनाना संसद का कार्य है। कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। 15 से 18 साल की बीवी से संबंध बनाने को दुष्कर्म मनाने वाली याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सती प्रथा भी सदियों से चली आ रही थी, लेकिन उसे भी खत्म किया गया, जरूरी नही जो प्रथा सदियों से चली आ रही हो तो वो सही हो। सुप्रीम कोर्ट ने ये बात तब की जब केंद्र सरकार की तरफ से ये दलील दी गई थी कि ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और इस लिए संसद इसे संरक्षण दे रहा है। यानी अगर कोई 15 से 18 साल की बीवी से संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जायेगा और केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि अगर कोर्ट को लगता है कि ये सही नहीं है तो संसद इस पर विचार करेगी। सुनवाई में बाल विवाह में केवल 15 दिन से 2 साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए थे, जहाँ सुप्रीम ने केंद्र से कहा था क्या ये कठोर सजा है? तो कोर्ट का जवाब रहा ये कुछ नहीं है, क्योंकि कठोर सजा का मतलब IPC कहता है, IPC में कठोर सजा मृत्युदंड है। दरअसल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बाल विवाह करने पर कठोर सजा का प्रावधान है।
बाल विवाह मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में बाल विवाह को अपराध माना गया है उसके बावजूद लोग बाल विवाह करते हैं। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कि ये मैरेज नहीं 'मिराज' है,और इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमारे पास तीन विकल्प हैं, पहला इस अपवाद को हटा दें यानि कि बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता है तो उसे रेप माना जाए। दूसरा विकल्प यह है कि इस मामले में पॉक्सो एक्ट लागू किया जाए यानी बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाता है तो उस पर पॉक्सो के तहत कार्रवाई हो,और तीसरा विकल्प यह है कि इसमें कुछ न किया जाए और इसे अपवाद माना जाए, जिसका मतलब है कि बाल विवाह के मामले में 15 से 18 साल की लड़की के साथ अगर उसका पति संबंध बनाए तो रेप नहीं माना जाएगा।
कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि बाल विवाह से बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और, बाल विवाह बच्चों पर एक तरह का जुर्म है क्योंकि कम उम्र में शादी करने से उनका यौन उत्पीड़न ज्यादा होता है, ऐसे में बच्चों को प्रोटेक्ट करने की जरूरत है। दरअसल, अदालत उस संगठन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया कि 15 से 18 वर्ष के बीच शादी करने वाली महिलाओं को किसी तरह का संरक्षण नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि एक तरह लड़कियों की शादी की कम से कम 18 वर्ष है, लेकिन इससे कम उम्र की लड़कियों की शादी हो रही है। याचिका में कहा गया था कि 15 से 18 वर्ष की लड़कियों की शादी अवैध नहीं होती है, लेकिन इसे अवैध घोषित किया जा सकता है. याचिका में यह भी दलील दी गई है कि इतनी कम में उम्र में लड़कियों की शादी से उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
रेप के अपवाद के खिलाफ बहस का मुख्य मुद्दा यह है कि अगर कोई महिला शादीशुदा नहीं है तो उसकी सहमति और असहमति के मायने हैं, लेकिन शादी होने के साथ ही उसकी सहमति और असमहित के मायने नहीं थे। वैसे बाल विवाह निरोधक कानून में प्रावधान है कि 18 साल कम उम्र में शादी नहीं हो सकती। हालांकि हिंदू मैरिज ऐक्ट में प्रावधान है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी हो सकती है और ये शादी अमान्य नहीं है। ये शादी अमान्य करार दिए जाने योग्य है और ये तभी अमान्य हो सकती है जब लड़की-लड़का बालिग होने के बाद ऐसा चाहे अन्यथा वह शादी मान्य हो जाती है।
कानूनी तौर पर यदि शादीशुदा महिला जिसकी उम्र 15 साल से ज्यादा है और उसके साथ उसके पति द्वारा अगर जबरन सेक्स किया जाता है तो पति के खिलाफ रेप का केस नहीं बनेगा। आईपीसी में रेप की परिभाषा में इसे अपवाद माना गया। आईपीसी की धारा-375(2) का अपवाद कहता है कि 15 से 18 साल की बीवी से उसका पति संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जाएगा जबकि 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ संबंध में रेप का केस दर्ज होने का प्रावधान है।