गैंग रेप और हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिलकिस बानो

 30 Nov 2022  867

ब्यूरो रिपोर्ट/in24 न्यूज़/दिल्ली

     साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के परिवार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गयी थी और उनके साथ गैंग रेप की वारदात को अंजाम दिया गया था. इस मामले में न्यायपालिका ने 11 आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी. लेकिन 15 साल जेल में बिताने के बाद सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया. बिलकीस बानो ने 2002 के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषियों को सजा में छूट देने तथा उन्हें रिहा किए जाने को चुनौती देते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा. बिलकिस बानो के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पहले दिए गए उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों की सजा पर निर्णय लेने की अनुमति दी गई थी. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने एडवोकेट शोभा गुप्ता की उन दलीलों पर गौर किया कि पीड़िता ने खुद दोषियों को सजा में छूट देने तथा उनकी रिहाई को चुनौती दी है जिसके बाद इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया. उन्होंने कहा कि सजा में छूट के खिलाफ ऐसी ही अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस अजय रस्तोगी अब संविधान पीठ का हिस्सा हैं. सीजेआई ने कहा, 'सबसे पहले पुनर्विचार याचिका की सुनवाई होगी. इसे जस्टिस रस्तोगी के समक्ष पेश करने दीजिए.' जब बानो की वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि मामले की सुनवाई खुली अदालत में की जानी चाहिए तो पीठ ने कहा, 'केवल संबंधित अदालत उस पर फैसला कर सकती है.' सीजेआई ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बुधवार की शाम फैसला करेंगे.' इससे पहले, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने कहा था कि वह मामले में दोषियों को सजा में छूट देने तथा उन्हें रिहा करने को चुनौती देने वाली महिला संगठन 'नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन' की याचिका पर सुनवाई करेगी. उल्लेखनीय है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा की की तरफ से दोषियों की रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है. बता दें कि शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सज़ा माफ़ी का विरोध किया था. अपने हलफनामे में सरकार ने कहा था कि 'उनका (दोषियों) का व्यवहार अच्छा पाया गया था' और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में चौदह साल गुजार चुके थे. हालांकि, 'अच्छे व्यवहार' के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप भी लगे थे.

 
               मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान 'महिला का शील भंग करने के आरोप' में एक एफआईआर दर्ज की गई थी और उसी दौरान दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे. इसी बीच दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सजा माफ़ी के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देते हुए इस याचिका को 'अव्यवहार्य और राजनीति से प्रेरित' बताया था. राधेश्याम शाह पर कुछ दिन पहले मामले के एक प्रमुख गवाह को धमकाने के भी आरोप लगे थे. मामले के प्रमुख गवाह इम्तियाज घांची ने इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखते हुए जान के खतरे के मद्देनजर सुरक्षा की मांग की थी. ज्ञात हो कि बीते 15 अगस्त को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था. सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी. उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपने वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी. गुजरात के गोधरा से बीजेपी विधायक चंद्र सिंह राउल गुजरात सरकार की उस समिति के उन चार सदस्यों में से एक थे, जिसने बिलकीस बानो के साथ बलात्कार और उनकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों को रिहा करने का फैसला किया था. राउलजी ने बेहद विवादास्पद टिप्पणी के साथ इस फैसले का बचाव किया था. एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि 2002 के गुजरात दंगों के इस मामले के दोषियों में शामिल कुछ लोग 'ब्राह्मण' हैं, जिनके अच्छे 'संस्कार' हैं और यह संभव है कि उन्हें फंसाया गया हो. उन्होंने यह भी कहा था कि हो सकता है कि वे बेगुनाह हों, क्योंकि सांप्रदायिक स्थिति में एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के निर्दोष लोगों को फंसाने की कोशिश भी की जा रही है. उन्होंने कहा था कि जेल में दोषियों का आचरण अच्छा था. राउलजी गोधरा से छह बार विधायक रह चुके हैं और इस बार भी भाजपा के टिकट पर गोधरा से ही चुनाव मैदान में उतरे हैं. अक्टूबर महीने में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने भी एक बयान में दोषियों के बचाव में कहा था कि उन्हें अच्छे व्यवहार के चलते रिहा किया गया था. एक अख़बार से बात करते हुए संसदीय कार्य और कोयला मंत्री ने कहा था, 'जो भी हुआ है, वह कानून के प्रावधानों के अनुसार हुआ है. किसी भी व्यक्ति के जेल में एक निश्चित समय काटने के बाद उन्हें रिहा करने का प्रावधान है. इस मामले में वही नियम, जो पूरी तरह कानून के हिसाब से है, उसे अपनाया गया है.' मालूम हो कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं. तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला कर दिया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे. बिलकीस बानो द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था. केस की सुनवाई गुजरात के अहमदाबाद कोर्ट में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया. 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्ध बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था. अब बिलकीस बानो ने इंसाफ पाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाय चंद्रचूड़ ने सीकृति दे दी है ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि जिन 11 दोषियों को रिहा किया गया है उन्हें राहत मिलती है या फिर जेल !