यूपी का एक और माफिया मुंबई की जेल में काट रहा है उम्र कैद की सजा

 15 Apr 2023  1711
क्राइम डेस्क/in24न्यूज़/मुंबई
 
   इन दिनों उत्तर प्रदेश के माफियाओं की चर्चा पूरे देश में हो रही है. जब से अतीक अहमद और उसके पूरे परिवार पर यूपी पुलिस की कार्रवाई शुरू हुई है, तब से ही अतीक अहमद के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के कई माफियाओं का विषय देश में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. आज से लगभग 40 साल पहले यूपी (UP) से मुंबई (Mumbai) पहुंचा अब्दुल कयूम अंसारी आज जरायम की दुनिया में अबू सलेम (Abu Salem) के नाम से जाना जाता है. मुंबई में 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड की तूती बोला करती थी. अलग-अलग ऐसे पांच कुख्यात गिरोह थे जिनका मायानगरी मुंबई पर दबदबा था, जो मुंबई पुलिस की आंखों की किरकिरी बन चुके थे. इनमे दाऊद इब्राहिम कासकर, अमर नाईक, छोटा राजन और अरुण गवली के अलावा अबू सलेम नाम का नाम भी माफिया डॉन के रूप में लिया जाता था. इन सभी की दहशत भी मुंबई में हुआ करती थी. आज जितना अतीक अहमद का खौफ यूपी की जनता के जेहन में घूम रहा है उतना ही खौफ अबू सलेम का हुआ, हालांकि अतीक अहमद की तरह अबू सलेम भी जेल की सलाखों के पीछे है. अबू सलेम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले सरायमीर गांव का रहने वाला था. करीब 20 साल की उम्र में ही उसने काम की तलाश में मुंबई का रुख किया. 80 के दशक में अबू सलेम ने विले पार्ले में स्थित एक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ पर काम करना शुरू किया. विले पार्ले में ही उसकी पहचान दाऊद इब्राहिम के गिरोह के लोगों से हो गई. दाऊद के छोटे भाई अनीस ने उसे बतौर अपना ड्राइवर रख लिया था. उस दौरान डी कंपनी के नाम से कुख्यात दाऊद इब्राहिम के गिरोह की कमाई का जरिया स्मगलिंग के अलावा जबरन उगाही भी था. दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम और छोटा शकील जैसे क्रिमिनल वसूली के लिए बिल्डरों, बड़े-बड़े व्यापारियों और फिल्मकारों को धमकी भरे फोन किया करते थे. और जो पैसे नहीं देता, उसे दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया जाता था. इसके अलावा दाऊद गिरोह अपने विरोधी गिरोह जैसे अरुण गवली और छोटा राजन के गिरोह और के सदस्यों पर भी फायरिंग करवा कर उनकी हत्या करवा देता था. इस काम के लिए अक्सर शूटरों की जरूरत पड़ती थी. यूपी के आजमगढ़ से नए-नए युवाओं को मुंबई बुलाकर अबू सलेम उन्हें डी कंपनी के लिए मुहैया कराता था. खासकर युवाओं को, जिनका मुंबई पुलिस के पास कोई आपराधिक रिकॉर्ड न हो और जो पांच-दस हजार रूपये के लिए भी गोली चलाने के लिये तैयार हो जाते. अबू सलेम की यही खूबी दाऊद इब्राहिम कासकर को बहुत ज्यादा अच्छी लगी. इसलिए कुछ ही दिनों में डी कंपनी में अबू सलेम का कद बड़ी ही तेजी से बढ़ा. दाऊद ने उसे फिल्मी हस्तियों से वसूली की जिम्मेदारी सौंपी. डी कंपनी की ओर से तैयार की गई 12 मार्च 1993 की मुंबई बम धमाके की साजिश में भी अबू सलेम शामिल रहा. डी कंपनी को उम्मीद थी कि बमकांड के बाद शहर में फिर एक बार दंगे भड़क जाएंगे और उन दंगों में इस्तेमाल करने के लिए दाऊद में बड़े पैमाने पर हथियारों का जखीरा मुंबई भिजवाया था. अनीस इब्राहिम के कहने पर उसी जखीरे में से अबू सलेम ने 3 AK-47 राइफल और रिवॉल्वर फिल्म स्टार संजय दत्त के बांद्रा स्थित आवास पर पहुंचा दिए. जब तक मुंबई पुलिस पूरी साजिश का खुलासा कर पाती, तब तक अबू सलेम दुबई भाग चुका था, लेकिन मुंबई पुलिस ने इस मामले में टाडा के तहत संजय दत्त को गिरफ्तार कर लिया. दुबई में दाऊद के साथ काम करते-करते अबू सलेम में महत्वाकांक्षा जगी कि वो अपना खुद का गिरोह बनाए. कई बार वह दाऊद को बिना बताए जबरन उगाही के लिए मुंबई में फोन करने लगा. इस बीच अगस्त 1997 में टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार की मुंबई के ओशिवारा इलाके में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. मुंबई पुलिस का कहना था कि गुलशन कुमार की हत्या अबू सलेम ने ही करवाई थी. गुलशन कुमार की हत्या अबू सलेम के आपराधिक करियर का टर्निंग प्वाइंट था. सलेम पर आरोप था कि उसने ये हत्या दाऊद इब्राहिम की जानकारी और उसकी मर्जी के बगैर करवाई थी. इस मामले से गुस्साए अनीस इब्राहिम ने दुबई में उनके साथियों के साथ अबू सलेम के घर पर हमला कर दिया, लेकिन अबू सलेम को पहले से ही की भनक लग चुकी थी. इसलिए वह अनीस के आने से कुछ देर पहले ही दुबई से निकल भागा. दुबई से निकलने के बाद अबू सलेम अमेरिका और यूरोप के कई देशों में भटकता रहा और वहां से अपने गिरोह को ऑपरेट करता रहा. उसके इशारे पर मुंबई के मशहूर बिल्डर प्रदीप जैन की उनके दफ्तर में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. उस पर अभिनेत्री मनीषा कोइराला के सेक्रेटरी अजीत दीवानी को भी मरवाने का आरोप लगा था. मुंबई बम कांड सहित इन तमाम आपराधिक मामलों में मुंबई पुलिस अबू सलेम को तलाश रही थी और उसके खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस भी निकाला गया. इस बीच अबू सलेम को बॉलीवुड की अभिनेत्री मोनिका बेदी से इश्क हो गया. मोनिका बेदी यूरोप के देश नॉर्वे की रहने वाली थी और मुंबई आकर फिल्मों में काम करती थी. साल 2002 में उसे और मोनिका को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में स्थानीय पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से देश में रहने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई उसको प्रत्यर्पित कराने के लिए लिस्बन पहुंची लेकिन अबू सलेम ने पुर्तगाल की अदालत में अपने प्रत्यर्पण को चुनौती दी. करीब तीन साल तक चले मुकदमे के बाद नवंबर 2005 में उसे और मोनिका बेदी को प्रत्यर्पित करके सीबीआई मुंबई लाई. अबू सलेम भारत तो आ गया, लेकिन उसे प्रत्यर्पित करते वक्त पुर्तगाल की अदालत ने भारत सरकार पर कई कड़ी शर्तें लाद दी. एक शर्त ये थी कि सलेम पर किसी भी मामले में दोष सिद्ध होने पर फांसी की सजा नहीं होगी. उसे 25 साल से ज्यादा जेल की सजा नहीं सुनाई जा सकती और जिन 7 मामलों की लिस्ट सीबीआई ने पुर्तगाल की अदालत को सौंपी थी. उनके अलावा किसी भी मामले में सलेम पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. अबू सलेम को बिल्डर प्रदीप जैन और मुंबई बम कांड के मामलों में उम्र कैद की सजा सुनाई गई. दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद में दर्ज मामलों में भी उसे कई साल जेल की सजा हुई. अबू सलेम फिलहाल नवी मुंबई की तलोजा जेल में है. जेल के भीतर दो बार उस पर जान लेने के इरादे से हमले भी हो चुके हैं.