खो-खो का राष्ट्रीय खिलाड़ी बाल काटने को मजबूर

 15 Sep 2020  831

संवाददाता/in24 न्यूज़.  
कई बार मजबूरियां इंसान की प्रतिभा को किसी और पेशे से जोड़ देती हैं. बिहार सरकार भले ही खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने को लेकर लाख दावे कर ले, लेकिन सच्चाई दावे से काफी पीछे है। इसका एक उदाहरण सीतामढ़ी में देखने को मिला। राष्ट्रीय स्तर पर खो-खो में सूबे का नाम रोशन करने वाले परिहार प्रखंड के सुरगहियां गांव निवासी कमलेश कुमार सैलून चलाकर जीवनयापन कर रहे हैं। कमलेश कुमार कई बार राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। 2015 में ईस्ट जोन प्रतियोगिता में ब्रांज मेडल हासिल किए। राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में टीम को जीत दिलाने में प्रमुख भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन आज उसकी जिन्दगी में सिवाय अंधेरे के कुछ नहीं है। कमलेश आज हजामत की दुकान चलाकर घर चलाने को मजबूर है। असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक, दिल्ली, महाराष्ट्र समेत कई शहरों में उसने बड़े प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया, लेकिन बदले में उसे हजामत की दुकान चलाकर जिंदगी चलाने की मजबूरी मिली। इसके बाद भी उसका हौसला कम नहीं हुआ है। खिलाड़ी दुकान चलाने के साथ-साथ अब अपने गांव के बच्चों को खो-खो का प्रशिक्षण दे रहा है। कमलेश का कहना है कि वे अब तक जितने भी जगह गए हैं चंदे के पैसे से गए हैं। सिस्टम से कोई भी मदद नहीं मिली। लेकिन अभी भी उम्मीद है कि कभी तो सिस्टम जगेगा और उसकी प्रतिभा का कद्र होगा। कमलेश अपने अधूरे सपने को पूरा करने के लिए गांव के बच्चों को खो-खो का प्रशिक्षण देते हैं। कमलेश को अब सिस्टम से मदद की उम्मीद है। देखना है बिहार सरकार की नींद कब खुलती है और कमलेश की परेशानियां कब खत्म होती हैं!